24 जून 2018 को स्त्रियों को ड्राइविंग से दूर रखने वाला दुनिया का इकलौता देश सऊदी अरब स्त्रियों के लम्बे अहिंसक संघर्ष के बाद अंततः झुक गया और पुरुषों की तरह वहाँ की राजशाही ने सऊदी स्त्रियों को भी अपनी कार चलाने की आज़ादी दे दी - हाँलाकि अभी भी इस्लामी शुद्धता को अक्षुण्ण रखने के नाम पर इसमें अनेक स्त्रीविरोधी शर्तें समाहित हैं। इस से पहले जब जब भी साहसी स्वतंत्रचेता सऊदी स्त्रियों ने प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन किया उनपर इस्लाम विरोधी, विदेशियों के उकसावे से प्रभावित,अनैतिक और देशद्रोही होने का आरोप लगाया गया। मजेदार तथ्य यह है कि देश के कानून की कोई धारा स्त्रियों को ड्राइविंग करने से नहीं रोकती पर वहाँ इस्लामी नैतिकता की हिफ़ाजत करने वाली पुलिस बीच में आ जाती है और ज्यादातर मामलों में बगैर मुकदमा चलाये आंदोलनकारी स्त्रियों को प्रताड़ित करती है ,हिरासत में रखती है और उनकी आज़ादी का हनन करती है। 24 जून को यह इजाज़त दे तो दी गयी पर पिछले महीने इसकी माँग करने वाली प्रमुख स्त्री अधिकार कार्यकर्ताओं को अब भी हिरासत में रखा गया है - जाहिर है इसका श्रेय शासन स्त्रियों के संघर्ष को नहीं देना चाहती।मीडिया में यह बताया जा रहा है कि इस फैसले से बड़ी संख्या में शिक्षित स्त्रियाँ बाहर निकल कर कामकाज में लगेंगी और सऊदी अर्थव्यवस्था पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा। वास्तविक परिणाम तो आने वाला समय ही बताएगा।
डॉ आयशा अलमाना ,डॉ हिस्सा अल शेख और डॉ मदीहा अल अजरूश हर वर्ष नवम्बर के शुरुआती हफ़्ते में पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार वार्षिक मेल मुलाकात के लिए एकत्र होने वाली करीब पचास सऊदी महिलाओं के समूह का हिस्सा हैं जो सऊदी अरब के इतिहास में दर्ज़ हो गये 6 नवम्बर 1990 के ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन की स्मृति ताज़ा करने और विरोध की मशाल जलाये रखने के लिये आयोजित की जाती हैं , "ड्राइवर" लिखे हुए टी शर्ट पहनती हैं और कार का चित्र बना हुआ केक काटती हैं -- वर्षगाँठ के रूप में साल दर साल मनाये जाने वाले वे इस प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन की फ़ोटो खींच कर एकत्र करती रही हैं।इंटरनेट ,फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मिडिया में ये तस्वीरें उपलब्ध हैं भले ही सऊदी अरब का शासन उनके ऊपर दमनात्मक शिकंजा कितना भी कसता रहे।
सऊदी स्त्रीवादी आंदोलन की जनक मानी जाने वाली डॉ आयशा अलमाना एक शिखर व्यवसायी होने के साथ साथ देश की पहली महिला पी एच डी हैं और किसी शिक्षा संस्थान की पहली प्रिंसिपल भी हैं। समाजशास्त्र के क्षेत्र में उनके शोध का विषय भी सऊदी महिलाओं का आर्थिक उत्थान ही था। "फ़ोर्ब्स मिडिल ईस्ट" पत्रिका ने उनको अपना खानदानी व्यवसाय चलाने वाली पाँचवीं सबसे प्रभावशाली अरब महिला के रूप में नामित किया।
डॉ शेख यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हैं और डॉ अजरूश स्त्री अधिकार ऐक्टिविस्ट होने के साथ साथ देश की जानीमानी फ़ोटोग्राफ़र भी हैं।
डॉ आयशा, डॉ शेख और डॉ अजरूश ने मिलकर नवम्बर 1990 के ऐतिहासिक ड्राइविंग प्रतिरोध प्रदर्शन पर एक संस्मरणात्मक किताब लिखी है जो मार्च 2014 के रियाद बुक फ़ेयर में हॉट केक की तरह बिकी (फ़ोटो )-- सऊदी अरबिया की निर्भीक ब्लॉगर ईमान अल नफ़्ज़ान इस किताब का अरबी से अंग्रेज़ी अनुवाद कर रही हैं। इसका एक छोटा सा अंश उन्होंने saudiwoman.me ब्लॉग ने पोस्ट किया है -- यहाँ पाठकों के लिए उसका हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है।
प्रस्तुति : यादवेन्द्र |
6 नवम्बर 1990 को दोपहर बाद के करीब ढ़ाई बजे की बात है ,सेफ़ वे सुपर मार्किट की पार्किंग में ढेर सारी महिलायें एकत्रित होने लगी थीं। उनमें से कुछ को उनके ड्राइवर वहाँ ले के आये थे और कुछ को उनके शौहर या बेटे --- पार्किंग के अंदर पहुँच कर चाहे ड्राइवर हो या शौहर या बेटा ,सबने गाड़ी महिलाओं के हवाले कर दी। देखने से साफ़ मालूम हो रहा था कि कारों की संख्या की तुलना में महिलाओं की उपस्थिति कहीं ज्यादा थी -- कुल जमा चौदह कारें थीं जबकि विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए सैंतालीस महिलायें।ऐसा नहीं था कि सब एक दूसरे से परिचित सखियाँ सहेलियाँ ही थीं ,बल्कि उनमें से अनेक ऐसी थीं जो एक दूसरे से पहली मर्तबा मिल रही थीं। जिन जिन महिलाओं के पास सऊदी अरबिया के बाहर के देशों से प्राप्त कानूनी ड्राइविंग था वे एक एक कर स्टीयरिंग सँभाल कर बैठ गयीं और दूसरी औरतें साथ देने के लिए बगल और पीछे की सीटों पर बैठ गयीं।दोपहर बाद की नमाज़ (जौहर) की अज़ान जैसे ही शुरू महिलाओं ने अपनी अपनी गाड़ियाँ स्टार्ट कर दीं। उन सभी महिलाओं के ड्राइवर ,शौहर और बेटे पूरी खामोशी से पार्किंग में खड़े खड़े सबकुछ देखते रहे।इस आंदोलन की सरलता और सच्चाई ने इन महिलाओं को एक दूसरे के प्रति इतना भरोसा दिला दिया था कि वे एक तरह के श्रद्धाभाव में आकर साझा विरोध प्रदर्शन का साहस जुटाने में सफल रहीं। एकसाथ नहीं बल्कि एक के पीछे दूसरी ,तीसरी,चौथी …गाड़ी चली।कारों के इस काफ़िले में सबसे आगे आगे वफ़ा अल मुनीफ़ की कार चल रही थी .... डॉ आयशा अलमाना उनके पीछे पीछे थीं।किंग अब्दुल अजीज़ स्ट्रीट से शुरू होकर यह काफ़िला ओरोबा स्ट्रीट तक गया ,फिर बाँयी तरफ़ मुड़ गया और थालाथीन स्ट्रीट पर आ गया। वहाँ लाल बत्ती होने के कारण काफ़िला थोड़ा धीमा हुआ। इस दरम्यान कई बार आगे की कारें इसलिए धीमी हुईं कि पीछे वाले साथ आ जाएँ -- उन्होंने शुरू में ही साथ साथ चलने और रहने का फैसला किया था। कार चलाती महिलाओं को पैदल राह चलते लोग और दूसरी गाड़ियाँ चलाते लोग भरपूर अचरज के साथ मुड़ मुड़ कर देख रहे थे .... उन्हें अपनी आँखों पर विशवास नहीं हो रहा था, वे सदमे में थे पर कुछ कर नहीं पा रहे थे -- हतप्रभ होकर ताकते रहे।
बागी तेवर अपनाये हुए ये महिलायें इस बात से उत्साहित थीं कि पुलिस ने उनको कहीं रोक नहीं … या यूँ कहें कि उनकी तरफ आँखें उठा कर नहीं देखा। नेतृत्व कर रही महिलाओं ने एक और चक्कर लगाने का निश्चय किया .... पर जैसे ही दूसरा चक्कर शुरू हुआ पुलिस एकदम से हरकत में आ गयी- हाथ देकर गाड़ियों के काफ़िले को रोक दिया। रियाद पैलेस फंक्शन हॉल के सामने किंग अब्दुल अजीज़ स्ट्रीट पर एक एक कर सभी कारों को रोक दिया गया। पुलिस के पीछे देखते देखते धार्मिक पुलिस (आधिकारिक नाम ,कमीशन फॉर द प्रमोशन ऑफ़ वर्च्यू एंड प्रिवेंशन ऑफ़ वाइस ) के लोग जत्था बना कर खड़े हो गये।
पुलिस ने महिलाओं की गाड़ियों का काफ़िला रोकने के बाद सबसे पहला काम यह किया कि एक एक कर ड्राइविंग सीट पर बैठी सभी महिलाओं से उनके ड्राइविंग लाइसेंस माँगे। आगे बढ़ कर एक महिला ने तपाक से अमेरिका में हासिल किया हुआ अपना ड्राइविंग लाइसेंस थमा दिया -- इस अप्रत्याशित घटना के लिए वह तैयार नहीं था ,सो घबरा कर वह अपने अफ़सर को बुलाने अंदर चला गया।उसके पीछे पीछे पुलिस के आला अफ़सर तो आये ही धार्मिक पुलिस के लोग भी सामने आ खड़े हुए। दोनों के बीच इस बात को लेकर खींच तान होने लगी कि उन महिलाओं के साथ कौन निबटेगा -- धार्मिक पुलिस के अफ़सर महिलाओं को अपने कब्ज़े में रख कर जाँच करना चाहते थे। महिलायें इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं हुईं ,न ही पुलिस अफ़सर उन्हें धार्मिक पुलिस को सौंपने के लिए राज़ी हुए। "
कट्टरपंथी सत्ता को खुले आम चुनौती देने वाले इस प्रदर्शन का नतीज़ा यह हुआ कि इसमें भाग लेने वाली नौकरी पेशा महिलाओं और उनके पतियों को गिरफ़्तार कर लिया गया और जेल से छूटने पर नौकरी से या तो निकाल दिया गया या प्रताड़ित किया गया।सार्वजनिक तौर पर अपमानित किये जाने का सिलसला अबतक चल रहा है पर स्वतंत्रचेता स्त्रियों के हौसले पस्त नहीं पड़े। थोड़े थोड़े समय बाद प्रतीकात्मक विरोध की ख़बरें निरंतर आती रहीं। कुवैत पर इराकी कब्ज़े के समय जब पूरा अरब जगत भयभीत था ,एकबार फिर सऊदी महिलाओं ने सामूहिक तौर पर ड्राइविंग का प्रदर्शन कर के कठमुल्लेपन को चुनौती दी -- उनका तर्क था कि पुरुषों को लड़ाई के लिए पूर्णकालिक तौर पर उपलब्ध कराने के लिए यह ज़रूरी है कि महिलाओं को अपना कामकाज संपन्न कर सकने के लिए ड्राइविंग करने की इजाज़त दी जाये।
प्रतिकार के इस ऐतिहासिक प्रदर्शन के इक्कीस साल बाद मक्का के पवित्र शहर में जन्मी युवा इंजिनियर मनल अल शरीफ़ ने 2011 की गर्मियों में जब सारा मध्य पूर्व लोकतंत्र की माँग करते हुए युवा विद्रोह की ज्वाला में धू धू कर जल रहा था तब सऊदी अरब की स्त्रियों की आज़ादी के लिये प्रतीकात्मक तौर पर खुली सड़क पर घंटा भर कार चला कर एक बार फिर से बड़ा धमाका कर दिया -- पहले अकेले और दूसरी बार भाई के साथ बैठ कर कार चलाने का कारनामा मनल ने इसबार रियाद में नहीं पूर्वी राज्य खोबर में किया। उनको इस "गुस्ताख़ी"के लिए न सिर्फ़ बार बार गिरफ़्तार किया गया बल्कि "अरामको" जैसी बड़ी कम्पनी की सम्मानित नौकरी से निकाल दिया गया। जेल से रिहाई के लिए शासन तब तैयार हुआ जब मनल के पिता स्वयं सऊदी अरब के बादशाह के दरबार में माफीनामे के साथ हाज़िर हुए। एक गैर अरबी युवक से शादी के लिए शासन ने उनको अनुमति नहीं दी तब उनको देश छोड़ कर दुबई में नौकरी लेनी पड़ी -- हर हफ़्ते वे दुबई से पहली शादी से हुए बेटे से मिलने सऊदी अरब आती हैं। बाद में वे ऑस्ट्रेलिया जाकर बस गयीं।
मई 2011 में खुले आम सऊदी सड़कों पर गाड़ी चला कर तूफ़ान खड़ा कर दीं वाली मनल कहती हैं : "मेरे आसपास सभी लोग सऊदी औरतों के ड्राइविंग पर लगे प्रतिबन्ध की आलोचना तो करते थे पर आगे आने को कोई तैयार नहीं था … उनदिनों अरब बसंत की चर्चा और हवा चारों ओर फ़ैल रही थी ,सो मुझे लगा कि घर में बैठे बैठे स्थितियों को कोसते रहने का कोई फायदा नहीं.... करना है कुछ तो इसी समय करना है ,अब और इंतज़ार नहीं .... कोई न कोई तो होगा ही जिसको अगुआई करनी होगी ,दीवार ध्वस्त करनी होगी कि अब देखो ,क्या हुआ जो तुमने खुली सड़क पर गाड़ी चला दी … ऐसा करने पर कोई रेप थोड़े कर देगा। "
आगे मनल बताती हैं कि जब पुलिस ने उनको रोका और बोला :"ऐ लड़की ,ठहरो और गाड़ी से उतर कर बाहर आओ .... इस मुल्क में औरतों को गाड़ी चलाने की इजाज़त नहीं है। " मैंने पूछा :"मेहरबानी कर के मुझे बतायें मैंने कौन सा कानून तोड़ा है ?"
इसका जवाब किसी के पास नहीं था ,वे सिर्फ़ यह बोले :"तुमने कोई कानून नहीं तोड़ा ....पर चलन / परिपाटी का उल्लंघन किया है। "
अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए व्यापक जान समर्थन जुटाने के लिए उन्होंने woman2drive अभियान की शुरुआत की। शासन के प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के लिए उन्हें महीनों जेल में रहना पड़ा। माँ पिता और बेटे के सामने मनल को सार्वजानिक तौर पर वेश्या कह कर पुकारा गया - माँ जब इससे आहत होकर बेटी से अपना रास्ता बदल देने का आग्रह करतीं तो मनल का एक ही जवाब होता कि जिस दिन सऊदी सरकार पहली औरत को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करेगी उस दिन मैं अपना अभियान रोक दूँगी। उनकी मौत की झूटी अफ़वाह भी फैलाई गयी। ड्राइविंग के अतिरिक्त सऊदी शासन के अनेक दमनात्मक कानूनों की उन्होंने खुली मुख़ालफ़त की। उन्हें इन प्रताड़नाओं के कारण अपना देश छोड़ कर जाना पड़ा ,अब वे ऑस्ट्रेलिया में रहती हैं। उनका कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से मेरे दो चेहरे हैं - मेरे अपने देश में मैं एक विलेन हूँ - एक ऐसी गिरी हुई औरत जो धर्म को चुनती देती है इसलिए घृणा का पात्र है। पर बाहर की दुनिया में मैं एक हीरो हूँ।
मनल को अपूर्व साहस का परिचय देने के लिए 2012 के ओस्लो फ्रीडम फ़ोरम में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया और क्रियेटिव डिसेंट के हेवेल प्राईज़ से नवाज़ा गया। टाइम पत्रिका ने उन्हें 2012 में दुनिया के सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों के समूह में शामिल किया है। अपने देश लौटने पर उनपर आक्रमण और तेज हो गए और अंततः नौकरी से हाथ धोना पड़ा। उनके इन संस्मरणों की किताब "डेयरिंग टु ड्राइव:ए सऊदी वुमन्स अवेकेनिंग" (2017) दुनिया के एक बड़े प्रकाशन से छप कर आ चुकी है जिसके अनेक भाषाओँ में अनुवाद हुए हैं।