पहल-89 । गीत चतुर्वेदी मेरे पसंदीदा लेखकों में से हैं। इधर तेजी से उभरे ऊर्जावान युवा रचनाकारों के बीच गीत की रचनाओं तक पहुंचना मेरी प्राथमिकता में रहता है। मुझे उनकी भाषा में समकालीन दुनिया के तनाव और उन तनाव भरी स्थितियों के कारकों के खिलाफ एक गुस्सा हमेशा प्रभावित करता है। गीत को मैं सिर्फ उनकी रचनाओं से जानता हूं, कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं। होता तो कह सकता कि कभी-कभी कुछ असहमतियों के साथ भी रहता हूं मित्र। सतत रचनारत गीत दुनियाभर की साहित्यिक हलचलों के साथ भी जुड़े रहते हैं और हिन्दी पाठक जगत को उससे अवगत कराने के लिए भी उत्सुक रहते हैं, ऐसा उन्हें पढ़ने के कारण कह पा रहा हूं। अभी पहल का नया अंक प्रकाशित हुआ है। पहल-89 । हाल ही में कनाडा के छोटे से शहर रॉटरडम में सम्पन्न हुए कविता समारोह की एक अच्छी रिपोर्ट गीत ने तैयार की है जो पहल के इस अंक में प्रकाशित हुई है। साथ ही गीत द्वारा अनुदित अरबी मूल की कवि ईमान मर्सल की डाायरी का अनुवाद भी पहल के इसी अंक में है। युवा कवि ईमान मर्सल वर्ष 2003 में रॉटरडम कविता समारोह में आमंत्रित थी। उसी समारोह के उनकी डायरी में दर्ज अनुभवों का अनुवाद पहल ने प्रकाशित किया है। यहां प्रस्तुत है उसका एक छोटा सा हिस्सा।
ईमान मर्सल
जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी, तब एक बार गली में कुत्ते ने मुझे काट लिया। इक्कीस दिनों तक लगातार हर सुबह मैं अल-मंसूरा अस्पताल के नर्स कार्यालय के सामने लगने वाली कतार में खड़ी रहती थी, ताकि एंटी-रैबीज इंजेक्शन ले सकूं। इंतजार करते हुए मैं अक्सर सबको एक-दूसरे से यह पूछते सुनते थी - किसने काटा ? कुत्ते, बिल्ली या घोडे ने ? यह मुझे बहुत बाद में पता लगा कि इनमें से किसी ने भी काटा हो, इंजेक्शन तो एक ही लगेगा। लेकिन यह पूछताछ इसलिए होती थी ताकि इंतजार करते हुए लोग एक-दूसरे से बात कर सकें। हर किसी की कहानी में एक अलग किस्म की नाटकीयता और अलगाव होता था। जबकि कतार से खड़े पुराने मरीज बताते थे कि जिस समय पेट में सुई लग रही हो, उस समय कैसे दर्द को संभालना चाहिए।
यहां आमंत्रित इन सारे कवियों को सुनते हुए मुझे वह दृश्य बरबस याद आता रहा। ये सारे कवि एक-दूसरे को अपना परिचय देते हुए बताते रहे थे कि उन्होंने इतने साल जेल में काटे हैं या इस-तरह की यातनाओं से गुजर चुके हैं। ऐसा नहीं कि जेल या यातना के अनुभवों को न सुना जाए या हमदर्दी न जताई जाए, बल्कि एक कवि या लेखक के तौर पर ये बातें एक किस्म की भूमिका के रूप में होती हैं, कि यह उनक लेखन के अलावा एक सकारात्मक गुण है। पच्च्चिमी संस्थाएं जब लेखकों को उनके जेल या यातना के अनुभवों के आधार पर चुनती हैं, तो उनका उद्देश्य यह बताना होता है कि फलां देश में अभिव्यक्ति स्वातंत्रय न होने की वजह से लेखक कितना असहाय है। हो सकता है कि यह उस भूमिका के प्रति एक किस्म का नकार हो, जो कि पश्चिम कुछ खास क्षेत्रों जैसे मिडिल-ईस्ट, में स्वतंत्रता को न उभरने देने में निभाता है।
अनुवाद - गीत चतुर्वेदी
2 comments:
बंधु, पढ़ने का मन तो करता है मगर ये टेक्स्ट के ऊपर टेक्स्ट होने से पढ़ा नहीं जाता। ठीक करो भाई।
ek kavi hi aisi nirdosh baat kar sakta hai...ye upari dikhawe me gady hote hue bhi ek mukammal kavita hai...bahut chhota ansh chhapne ke saath aapne is kavi aur uske sansamaran padhne ki bhookh jagrit kar di...dhanyavaad
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