
संवेदना की मासिक गोष्ठी, जो हर माह के पहले रविवार को होती है, आज काफी अच्छी उपस्थिति रही। उपस्थितों में मुख्यरुप से कथाकार विदध्यासागर नौटियाल, सुभाष पंत, अल्पना मिश्र, जितेन्द्र शर्मा, दिनेश चंद्र जोशी, मदन शर्मा, जितेन्द्र भारती, नवीन नैथानी, कवि राजेश सकलानी, प्रेम साहिल, रामभरत "सिरमोरी" आदि रचनाकारों के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता गीता गैरोला, पत्रकार भास्कर उप्रेती, सुनीता, शिक्षाविद्ध रचना नौटियाल मौजूद थे।
यह एक सामान्य गोष्ठी थी। संवेदना की सामान्य गोष्ठियों की विशेषता है कि ऐसी गोष्ठी में शहर भर के रचनाकार अपनी उन रचनाओं का पाठ करते है जो उन्होंने अभी लिखी भर हों और जिन पर प्रकाशन से पहले वे मित्रों की राय चाहते हों। रचनाओं पर विस्तृत चर्चा का एक अच्छा-खासा माहौल अपनी पूरी जीवन्तता के साथ होता है।
दिनांक 3।8।2008 को हिन्दी भवन, देहरादून पुस्तकालय में सम्पन्न हुई इस गोष्ठी में प्रेम साहिल ने अपनी कविता का पाठ किया। कथाकर मदन शर्मा ने एक संस्मरण सुनाया। मदन शर्मा इस बीच अपने जीवन के लम्बे दौर में साथ रहे अंतरग संगी साथियों को याद करते हुए एक श्रृंखला के तौर पर संस्मरण लिख रहे हैं। जांसकर यात्रा के कुछ अनुभवों को लिपीबद्ध रूप में मैंने भी रखा।

1 comment:
अच्छा लगा जान कर कि देहरादून में ऐसी गोष्ठी का आयोजन सतत हो रहा है।
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