Wednesday, April 22, 2009

चुनावी कोरस

पूंजीवादी लोकतंत्र के भीतर चुनाव कितना बड़ा झूठ है, इसे कहने की भी अब कोई जरूरत नहीं। चुनने की आजादी के नाम पर खेला जाने वाला झूठा खेल जारी है। क्षेत्र, जाति और धार्मिक भावनाओं को भड़काकर सिर्फ और सिर्फ वोट बटोरने की जरूरी कार्रवाई ने राजनेताओं को व्यस्त किया हुआ है। अपना प्रतिनिधि चुनने की आजादी के नाम पर सिर्फ वोट डालने का अधिकार एक ऐसा षडयंत्र है कि फिर मलते रहो हाथ पूरे पांच साल तक। वास्तविक आजादी क्या अपने प्रतिनिधि को वापिस बुलाने का अधिकार दिए बिना संभव है ? किसी भी निर्वाचन क्षेत्र के कुल मतदाताओं का सिर्फ 10-15 प्रतिशत समर्थन हासिल कर लेने पर ही क्या कोई वास्तविक प्रतिनिधि हो सकता है ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो इस पूरे खेल के गैर-जनतांत्रिक होने के बहुत साफ दिखते हुए स्तम्भ है। इसके अलावा जमाने की जटिलता में थोड़ा धूमिल से दिखने वाले और भी कई कारण हैं जिन पर विचार किए बगैर वास्तविक आजादी को पहचाना नहीं जा सकता। यहां सवाल है कि आरोप और प्रत्यारोप की उत्तेजना फैलाकर जीवन के जरूरी सवालों को दरकिनार करने की हर चालाकी जनता के साथ एक षडयंत्र नहीं तो और क्या है ? इतने बड़े देश के भीतर दमन के सारे औजारों के जरिए मत पेटियों को भर लेने का मामला एक सांख्यिकी आंकड़े के सिवा दूसरा कुछ नहीं। सिर्फ संख्याबल के द्वारा साम्प्रदायिकता की मुखालफत भी एक ढोंग ही कहा जाएगा। इतने सारे ढोंग और ढकोसलों ने ही जनता के एक सीमित हिस्से को इस झूठे खेल में दिलचस्पी लेने को उकासाया हुआ भी है और किसी ठोस विकल्प की लगभग अनुपस्थित-सी स्थिति ने उसे मजबूर भी किया है कि वह इस पूरे खेल में शामिल न हो तो क्या करे ?
चुनाव के इस मौसम में प्रस्तुत है दिनश चंद्र जोशी की कविता-


दिनेश चन्द्र जोशी


चुनावी कोरस




बेशर्मी की खाल ओढ़ कर
बगुले खड़े हैं हाथ जोड़ कर
लगा गिरगिटों का मेला
आई चुनाव की बेला है
जनता ! रहना सावधान ।

गठबन्धन की गलबहियां हैं
धूर्त हंसी की बतकहियां हैं
पाखंडियों का रेला है
आई चुनाव की बेला है
जनता ! रहना सावधान ।

इधर ठगों का जमघट है
उधर माफिया मरघट है
सत्ता का मद फैला है
आई चुनाव की बेला है
जनता ! रहना सावधान ।

बड़े कपट की चाल चलेंगें
घिघिया कर के तुझे छलेंगें
पग पग पर घोटाला है
आई चुनाव की बेला है
जनता ! रहना सावधान ।

भ्रष्टानन्द बड़े बड़े
धूर्त शिरोमणि हुए खड़े
गुंडाधीस चेला हैं
आई चुनाव की बेला है
जनता ! रहना सावधान।

मर्यादा कोने पड़ी है
लोकतन्त्र की खाट खड़ी है
गिद्धों ने नाटक खेला है
आई चुनाव की बेला है
जनता ! रहना सावधान।

4 comments:

संगीता पुरी said...

चुनावी माहौल के यथार्थ का सुंदर चित्रण .. अच्‍छी रचना।

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया इस उम्दा रचना को बांच कर..अद्भुत!!

श्यामल सुमन said...

लोकतंत्र का मंत्र में नेता अफसर यंत्र।
लोगों की चिन्ता नहीं लोकतंत्र षडयंत्र।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

vijay kumar sappatti said...

vijay ji ,

bahut hi shsakt alekh , padhkar accha laga . maza aa gaya .

badhai

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com