Wednesday, September 29, 2010

कइयों को पसंद है मसखरी


आज के उफनते और तलवार भांजते माहौल में मुझे 1928 में जनमी  प्रख्यात अश्वेत अमेरिकी कवियित्री माया एंजेलू की ये मशहूर कविता अनायास याद हो आई...एक पिद्दी से कोर्ट के फैसले को इतना दानवी बनाया जा रहा है कि जैसे पूरी मानव जाति इस से निकली घृणा के अन्दर भस्म हो जाएगी . मुझे लगता  है कि इस कविता की चेतना  समझदार  लोगों  को छू  कर  जरुर  शांत  और आश्वस्त  कर  पायेगी .यहाँ कविता का सम्पादित अंश दिया जा रहा है...प्रस्तुति यादवेन्द्र की है:


 मानव परिवार  
मैं देखती हूँ कि विविधताएँ बहुत  हैं
मानव परिवार  में
हम में से कई धीर गंभीर लोग हैं
और कइयों को पसंद  है मसखरी...
कुछ लोग दावा करते हैं
उन्होंने पूरा जीवन जिया खूब गहरे डूब कर
कइयों को लगता है
सिर्फ वे ही हैं जो छू पाए हैं
जीवन की सच्चाइयों को सच में...
* * * * * *
मैं छान आया सातों समंदर
और ठहरा भी हर जगह
देखे दुनिया भर के अजूबे
पर नहीं मिले तो नहीं ही मिले
एक जैसे मिलते जुलते लोग...
* * * * * *
जुड़वां हमशक्ल हुए तो भी
उनके नाक नक्श एक दूसरे पर कसते हैं ताने
प्रेमी जोड़े  चाहे कितने निकट लेटे हों
सोचते होते हैं अलग अलग ही...
* * * * * 
अलग अलग स्थान और काल में
हम दिखते तो  हैं एक दूसरे से बिलकुल जुदा
पर मेरे दोस्त,अपने  अलगावों  के मुकाबले
हम एक दूसरे के समान ज्यादा हैं.... 
पर मेरे दोस्त,अपने अलगावों के मुकाबले
हम एक दूसरे के समान ज्यादा हैं....
पर मेरे दोस्त,अपने अलगावों के मुकाबले
हम एक दूसरे के समान ज्यादा हैं...
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4 comments:

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

बहुत खूबसूरत!

अजेय said...

पूरी कविता दीजिए न !

भारत भूषण तिवारी said...

इस कविता के लिए आपका और यादवेन्द्र जी का शुक्रिया. एक बात और, Angelou का सही उच्चारण एंजेलू है.

विजय गौड़ said...

उच्चारण दुरस्त कर दिया है भारत भूषण भाई। आभार सुधार हेतु सुझाव के लिए।