पिछले दिनों पढ़ते हुए मेरे हाथ एक अनूठी सी बेहद छोटी कविता हाथ आयी। संयोग से कुछ शब्दों वाली इस कविता का शीर्षक ऐसा था जिसने मेरा ध्यान एकदम से खींच लिया - लंबी दूरी के धावक का अकेलापन। इसको पढ़ते हुए मुझे बार बार लगा कि दूर के निशाने साधने के लिए कितनी कुशल कारीगरी और फ़ोकस की दरकार होती है।
प्रचुर मात्रा में कवितायें ,उपन्यास और नाटक लिखने वाले कनाडा के प्रसिद्ध कवि एल्डेन नोव्लेन - एक संघर्षशील परिवार में उनका बचपन मुश्किलों और घनघोर अकेलेपन में बीता और लम्बी दूरी तय कर चोरी चोरी लाइब्रेरी से किताबें लेकर वे साहित्य की ओर उन्मुख हुए। पूरे जीवन में उनको कभी साल भर की स्थायी नौकरी नहीं मिल पायी ..... कोई गाड़ी खरीदने की कभी उनकी औकात नहीं हुई, न उन्हें ड्राइविंग आयी। एल्डेन कहते भी हैं कि "इस मुसीबत में मेरे पास तीन रास्ते थे - पागलपन , मौत या कविता"- ज़ाहिर है उन्होंने कविता का रास्ता चुना।
पर इस मुफलिसी में भी एल्डेन नोव्लेन ने उम्मीद का साथ कभी नहीं छोड़ा।उनकी कुछ पंक्तियाँ यहाँ उदधृत हैं ।
(प्रस्तुति : यादवेन्द्र)
मैंने , एक इंसान ने , मौत तक को पालतू बना लिया।
*******************मैं बुढ़ा ज़रूर गया हूँ
पर जादू टोना जानता हूँ
और जा घुसा हूँ
एक जवान आदमी के शरीर के अंदर .....
****************मैं कविता को आवाज़ लगाता हूँ
पर जादू टोना जानता हूँ
और जा घुसा हूँ
एक जवान आदमी के शरीर के अंदर .....
****************मैं कविता को आवाज़ लगाता हूँ
और वह है कि मुस्कुरा कर कहती है :
तुम कभी सयाने नहीं हुए ....
**********************
**********************
कितना अच्छा है कि
हम साझा करते हैं धरती को तमाम जीवों के साथ ...
कितना अकल्पनीय होता
कि मैं जन्म न लेता
और अनुपस्थित हो जाता यह संग साथ ....
*********************
और अनुपस्थित हो जाता यह संग साथ ....
*********************
कोई बच्चा जिस दिन समझ लेता है
कि सभी वयस्क आधे अधूरे दोषपूर्ण हैं
वह किशोर हो जाता है ...
जिस दिन वह उनको माफ़ कर देता है
वह बच्चा नहीं रहता वयस्क हो जाता है
और जिस दिन ऐसा करने के लिए
वह स्वयं को माफ़ कर देता है
बच्चा बुद्धिमान हो जाता है।
***********************
***********************
मुझे यह ईश निंदा जैसा कृत्य लगता है
कि कवितायें लिखी जायें
उन दुखों के बारे में
जिन्हें महसूस ही न किया गया हो ....
******************लंबी दूरी के धावक का अकेलापन
मेरी पत्नी आ धमकी कमरे में
जहाँ मैं लिखने में तल्लीन था
प्रेम कविता
उसी के लिए .....
और अब जब वह कविता
एकदम से लुप्त हो गयी
मन ही मन
बैठा बैठा कोस रहा हूँ
मैं अब उसी को ....
No comments:
Post a Comment