आठ मार्च पूरी दुनिया की संघर्षशील जुझारू महिलाओं के लिए एक यादगार दिन है। आठ मार्च के मुक्तिकामी संघर्ष, जो महिला कामगारों द्वारा अपने काम के घंटों को 16 से घटाकर 10 किए जाने की लड़ाई थी और जिसने गुजरे 10 सालों में घटित तमाम क्रातियों, आजादी के आंदोलनों तथा प्रत्येक छोटे बड़े संघर्षों के लिए दुनिया की महिलाओं को जो प्रेरणा दी, उसके एतिहासिक परिप्रेक्ष को केंद्र में रखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता शकुंतला ने अपनी बात संक्षेप में रखी।
कथाकार डा0 अल्पना मिश्र ने आर्थिक आजादी के सवाल को वर्तमान समय में स्त्री मुक्ति के संघर्ष का एक पड़ाव, के रूप में विशेष तौर पर चिन्हित किया और सम्पत्ति पर स्त्रियों के अधिकार को एक मुद्दे के रूप में रखा।
गीत संगीत और साहित्यिक रचनाओं के साथ महिला कामगारों के जीवनानुभवों का यह आयोजन अपने ही तरह का अनूठा आयोजन था जिसमें जहां एक ओर एक मजदूर महिला सरजहां सुनिता ने अपने जीवन की कठोर सच्चाइयों को बेबाकी से रखा वहीं दुसरी ओर जौनसार जनजातीय क्षेत्र में सामाजिक रूप् से सक्रिय शांति वर्मा ने एक जौनसारी गीत गाया। एम के पी पी जी कालेज की छात्रा मनीषा ने कथाकार दीपक शर्मा की कहानी "चमड़े का अहाता" का पाठ किया एवं स्वाति ने पवन करण की कविता "स्त्री सुबोधनी" का पाठ किया।एम के पी पी जी कालेज की एक अन्य छात्रा शिक्षा सेमवााल ने समाज में स्त्रियों की वर्तमान अवस्था पर समाजशात्रिय ढंग से बात रखी। पर्वतीय जनकल्याण समिति की हेमलता ने-
मनमानी करेंगे हम आज खुद से ये वायदा किया है ।
अब न आएंगे हम बाज खुद से ये वायदा किया है
गीत गाया।
उत्तराखण्ड महिला मंच की सामाजिक कार्यकर्ता कमला पंत जिन्होंने राज्य आंदोलन के दौर में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और लगातार सक्रिय हैं, ने अपने व्यवहारिक अनुभवों से सभा को संबोधित किया।
रंगकर्मी श्रीश डोभाल, पछास के छात्र नितिन और भोपाल ने भी अपनी बात रखी। दृष्टि नाट्य संस्था के राजीव कोठारी ने एक जनगीत गाया।
सभा का संचालन वरिष्ठ कवियित्री कृष्णा खुराना ने किया।
युवा रचनाकार प्रेरणा पांडे एवं जयंती द्वारा इस अवसर पर पढ़ी गई कविताएं यहां प्रस्तुत है-
प्रेरणा पांडे
लड़की
एक
मां, तुमने मुझे
गुड़िया न दी होती जो
मैं यही नहीं होती
न खेला होता घर घरौंदा
होता मेरा भी मन
तितली, हवा या एक परिंदा
तुमने सिखाया मुझे
इच्छाओं के सहस्त्रनाग का
फन पकड़ना
टूटे मन तो चुपचाप
आंसू बोना-
क्या ऐसा ही होता है
किसी लड़की का लड़की होना ?
दो
मैं खुश हूं कि मेरी एक बेटी है
मैं नहीं दूंगी उसको गुड़िया
सिखाउंगी उसे लड़ना-भिड़ना
समय से दो-दो हाथ करना
बनाएगी घरौंदे वह आसमान में
सिखाउंगी उसे
इच्छाओं के पर से उड़ना
पिता से, परिवार से
समाज से भिड़ जाने का
मैं दूंगी उसे हौसला
लड़की बनकर दिखाने का।
जयंती
औरत होने का दर्द
आज
जब जाना है मैंने तुम्हें
लिख रही हूं कविता
औरत होने का दर्द
भोग रही हूं वही पीड़ा
शताब्दी दर शताब्दी
हमारी ही शक्ल में
भोगी गई होगी जो
तुम्हारी जिज्ञासाएं
आज भी खोज रही हैं
अपना अर्थ
चल रहा है द्वंद
भीतर तुम्हारे
तुम जो बार-बार बदल देती हो कपड़े
न्ाहीं बदल पाती अपने आप को
सौंप आती हर रात
अपनी देह
नोंचने के लिए
फिर थके बदन गिरती हो
निढाल होकर
एक एक कर
गिनती हो अपनी खरोंचो को
अपने कीचड़ में उगा देती हो
एक बीज
और देती हो उसे एक शक्ल
अपनी ही तरह
3 comments:
बढ़िया रिपोर्ट प्रस्तुत की है आपने...कवितायेँ बहुत अच्छी लगीं...
आपको होली की शुभकामनाएं....
नीरज
मनमानी करेंगे हम आज खुद से ये वायदा किया है ।अब न आएंगे हम बाज खुद से ये वायदा किया है....यही है सूत्र वाक्य
is sabha me bhaag na le paane ka malal hai sath hi isk itne behtar tarike se sampann hone ki khushi..... prerna aur jayanti bahut prabhavshaali hain
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