दिनेश चन्द्र जोशी
dcj_shi@rediffmail.com
09411382560
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जैसे गायकी की विविध शैलियां होती हैं,घराने होते हैं, वैसे ही वोट मांगने की भी विविध शैलियां और घराने होते हैं। चुनावी मौसम में इन शैलियों की अदायगी और प्रदर्शन का उत्सवनुमा माहौल होता है। यहां कलाकार नेता होते हें और दर्शक मतदाता, यानी मतदाता के लिए चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। सो, जनता इस चार दिन की चांदनी के उत्सव में नेताओं की विभिन्न याचक मुद्राओं का दर्शन करती है, आनन्दित होती है और जूते,चप्पल,झापड़,टमाटर,अंडों से परहेज रख कर नेता का अपमान नहीं करती तथा उससे स्वयं का सम्मान करा कर धन्य धन्य हो जाती है। आधुनिक दौर में जिसे देह भाषा ( बाडी लेंग्वेज) कहते हैं, उसका प्रयोग भी 'मार्डन' किस्म के नेता वोट मांगने हेतु करने लगे हैं। एक ऐसे ही युवा नेता ने तय कर रक्खा था, अगर मतदाता साठ साल से उपर का होगा तो, उसके पांव छू कर वोट मांगूगा, अगर प्रौढ़ होगा, चालीस से पचास के बीच का, तो उसके समक्ष हाथ जोड़ूंगा, अगर बीस से चालीस के बीच का होगा तो उसे 'सहारा प्रणाम' कहूंगा, बीस से नीचे का होगा तो 'फ्लाइंग किस' दूंगा। और सचमुच उसकी इस अन्तिम अदा पर फिदा होकर ,फ्लाइंग किस' के कारण यंग इंडिया ने उसे जिता दिया।
वोट मांगने की देह भाषा (बाडी लेंग्वेज) के प्रयोग व विश्लेषण हेतु प्रबन्धन संस्थानों ने स्पेशल पैकेज तैयार कर लिये हैं। उनके अनुसार अगर नेता जी की परम्परागत शैली वोट बटोरने में नाकाम साबित हो रही है तो उन्हें तत्काल आधुनिक बाडी लेंग्वेज का प्रदर्शन सीखना चाहिए। यानी 'कीप स्माइलिंग' 'बी पाजीटिव', 'लुक कान्फीडेन्ट' 'आई टू आई कांटेक्ट' 'फोल्डिंग हैंड्स नाट नेसेसरी'( हाथ जोड़ना जरूरी नहीं) आदि आदि।
महानगरों और शहरी क्षेत्रों में यह मार्डन शैली काफी लोकप्रिय हो रही है।
ग्रामीण व कस्बाई क्षेत्रों में अलबा अभी वही पुरानी शैली से वोट मांगे जा रहे हैं। घिघियाते हुए, झुक कर हाथ जोड़ते हुए, बेशर्म शरारती मुस्कान के साथ थोड़ा लाचार, थोड़ा भिखारी विनम्रता ओढ़ी हुई अकिंचन शैली में।
इधर, मतदाता को भावुकता के चरम पर लाने हेतु नेताओं द्वारा रुदन क्रन्दन शैली का प्रयोग किया जाने लगा है।
भावुक मतदाता विवेकशून्य हो जाता है तथा दयाभाव की वर्षा कर वोट, क्रन्दन शैली के नेता के पक्ष में डाल देता है। इस चुनाव में यह शैली रिले रेस की तरह प्रयुक्त हो रही है। एक नेता का रुदन क्रन्दन इतना स्थाई भाव हो गया कि उसकी देखादेखी दूर दूर के कई अन्य नेताओं ने रो धो कर, आंसू टपका कर, दहाड़े मार कर, बुक्का फाड़ कर उस शैली को आलम्बन भाव की तरह गले लगा लिया।
कुछ नेता अभी भी अपनी अकड़ शैली के लिए विख्यात होते हैं। इनमें भूतपूर्व राजा,उजड़े हुए नरेश किस्म के नेता होते हैं। ये अपनी अकड़ शैली के बावजूद भी चुनाव में बाजी मार ले जाते हैं। एक ऐसे ही राजा के वंशज
वोट मांगते वक्त जनता के समक्ष कभी भी हाथ नहीं जोड़ते थे। मतदाता को स्वयं ही इज्जतवश हाथ जोड़ने पड़ते थे। नबाबजादे ने हाथ जोड़ने के लिए दो कारिन्दे किराये पर ले रक्खे थे। वे, नबाबजादे की ओर से हाथ भी जोड़ते थे और पांव भी छूते थे। नबाबजादे, बीच बीच में अपनी मूछें ऐंठते रहते थे और आखों से ऐसी आग उगलते थे जैसे मतदाता को भस्म कर देंगे। लेकिन मतदाता नबाबजादे को उनके राजसी खानदान और क्षेत्र में की गई धन वर्षा के कारण हर बार जिता देते थे। एक बार कुछ मतदाताओं ने गल्ती से पूछ लिया, हजूर, आपने संसद में कभी क्षेत्र के विकास हेतु कोई मांग नहीं रक्खी।
वे बोले, 'राजा कभी किसी से कुछ मांगता नहीं है, देता है। आपको क्या चाहिये बोलिये प'
मतदाता बोले, 'सरकार, रेलवे लाइन चाहिए,रेलवे लाइन के आने से क्षेत्र का विकास होगा।'
नबाबजादे बोले, 'मेरी टांसपोर्ट कम्पनी की जीप टोयेटा,बुलेरो गाड़ियां दौड़ती रहती हैं उनमें यात्रा किया करें आप लोग, रियायती पास मुझसे ले जाया करें। मैं रेल मंत्री से रेलवे लाइन नहीं मांग सकता,, वरना राजा किस बात का! उनको अगर रेल कर इंजन चहिये तो खरीद कर दे दूंगा,उनसे मांग नहीं सकता।'
ऐसे अकड़ू नेताओं की शैली अकड़ शैली कहलाती है।
कुछ नेता आते हैं,, ध्यानावस्था में आंखें बन्द किये हुए जैसे जनता के दुख कष्टों के निवारण हेतु जप तप योग कर रहे हों। वे जनता के समक्ष हाथ नहीं जोड़ते उल्टा आशीर्वाद देते हैं, जनता उनके आशीर्वाद से अभिभूत हो कर उनके पैर छूने लगती है। ऐसे सन्त बाबा किस्म के नेताओं की वोट मांगने की द्रौली 'स्थितप्रज्ञ शैली' कहलाती है।
अब ये जनता का अपना अपना नसीब है कि उसके क्षेत्र के भूतपूर्व, अभूतपूर्व,भावी, प्रभावी निष्प्रभावी नेता वोट मांगने की किस शैली में सिद्धथस्त हैं।
वोट मांगने की देह भाषा (बाडी लेंग्वेज) के प्रयोग व विश्लेषण हेतु प्रबन्धन संस्थानों ने स्पेशल पैकेज तैयार कर लिये हैं। उनके अनुसार अगर नेता जी की परम्परागत शैली वोट बटोरने में नाकाम साबित हो रही है तो उन्हें तत्काल आधुनिक बाडी लेंग्वेज का प्रदर्शन सीखना चाहिए। यानी 'कीप स्माइलिंग' 'बी पाजीटिव', 'लुक कान्फीडेन्ट' 'आई टू आई कांटेक्ट' 'फोल्डिंग हैंड्स नाट नेसेसरी'( हाथ जोड़ना जरूरी नहीं) आदि आदि।
महानगरों और शहरी क्षेत्रों में यह मार्डन शैली काफी लोकप्रिय हो रही है।
ग्रामीण व कस्बाई क्षेत्रों में अलबा अभी वही पुरानी शैली से वोट मांगे जा रहे हैं। घिघियाते हुए, झुक कर हाथ जोड़ते हुए, बेशर्म शरारती मुस्कान के साथ थोड़ा लाचार, थोड़ा भिखारी विनम्रता ओढ़ी हुई अकिंचन शैली में।
इधर, मतदाता को भावुकता के चरम पर लाने हेतु नेताओं द्वारा रुदन क्रन्दन शैली का प्रयोग किया जाने लगा है।
भावुक मतदाता विवेकशून्य हो जाता है तथा दयाभाव की वर्षा कर वोट, क्रन्दन शैली के नेता के पक्ष में डाल देता है। इस चुनाव में यह शैली रिले रेस की तरह प्रयुक्त हो रही है। एक नेता का रुदन क्रन्दन इतना स्थाई भाव हो गया कि उसकी देखादेखी दूर दूर के कई अन्य नेताओं ने रो धो कर, आंसू टपका कर, दहाड़े मार कर, बुक्का फाड़ कर उस शैली को आलम्बन भाव की तरह गले लगा लिया।
कुछ नेता अभी भी अपनी अकड़ शैली के लिए विख्यात होते हैं। इनमें भूतपूर्व राजा,उजड़े हुए नरेश किस्म के नेता होते हैं। ये अपनी अकड़ शैली के बावजूद भी चुनाव में बाजी मार ले जाते हैं। एक ऐसे ही राजा के वंशज
वोट मांगते वक्त जनता के समक्ष कभी भी हाथ नहीं जोड़ते थे। मतदाता को स्वयं ही इज्जतवश हाथ जोड़ने पड़ते थे। नबाबजादे ने हाथ जोड़ने के लिए दो कारिन्दे किराये पर ले रक्खे थे। वे, नबाबजादे की ओर से हाथ भी जोड़ते थे और पांव भी छूते थे। नबाबजादे, बीच बीच में अपनी मूछें ऐंठते रहते थे और आखों से ऐसी आग उगलते थे जैसे मतदाता को भस्म कर देंगे। लेकिन मतदाता नबाबजादे को उनके राजसी खानदान और क्षेत्र में की गई धन वर्षा के कारण हर बार जिता देते थे। एक बार कुछ मतदाताओं ने गल्ती से पूछ लिया, हजूर, आपने संसद में कभी क्षेत्र के विकास हेतु कोई मांग नहीं रक्खी।
वे बोले, 'राजा कभी किसी से कुछ मांगता नहीं है, देता है। आपको क्या चाहिये बोलिये प'
मतदाता बोले, 'सरकार, रेलवे लाइन चाहिए,रेलवे लाइन के आने से क्षेत्र का विकास होगा।'
नबाबजादे बोले, 'मेरी टांसपोर्ट कम्पनी की जीप टोयेटा,बुलेरो गाड़ियां दौड़ती रहती हैं उनमें यात्रा किया करें आप लोग, रियायती पास मुझसे ले जाया करें। मैं रेल मंत्री से रेलवे लाइन नहीं मांग सकता,, वरना राजा किस बात का! उनको अगर रेल कर इंजन चहिये तो खरीद कर दे दूंगा,उनसे मांग नहीं सकता।'
ऐसे अकड़ू नेताओं की शैली अकड़ शैली कहलाती है।
कुछ नेता आते हैं,, ध्यानावस्था में आंखें बन्द किये हुए जैसे जनता के दुख कष्टों के निवारण हेतु जप तप योग कर रहे हों। वे जनता के समक्ष हाथ नहीं जोड़ते उल्टा आशीर्वाद देते हैं, जनता उनके आशीर्वाद से अभिभूत हो कर उनके पैर छूने लगती है। ऐसे सन्त बाबा किस्म के नेताओं की वोट मांगने की द्रौली 'स्थितप्रज्ञ शैली' कहलाती है।
अब ये जनता का अपना अपना नसीब है कि उसके क्षेत्र के भूतपूर्व, अभूतपूर्व,भावी, प्रभावी निष्प्रभावी नेता वोट मांगने की किस शैली में सिद्धथस्त हैं।
4 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर उनको शत शत नमन!
क्या बात है ..मार दिया है नहले पर दहला ....पहले निर्वाचन आयोग ने फिर आपने :)
निर्वाचन आयोग को इन मे से एक पद्धति को वोट माँगने का मानक तरीक़ा घोषित कर ही देना चाहिए. ताकि व्यवस्था मे एकरूपता आ जाए. और सही उम्मीदवार चुन कर सामने आए.
वोट मांगने के ये तरीके चुनाव पार्टियों को छपा कर बांटने चाहिये अपने प्रत्यासियों को।
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