एक
जरा सी दुनिया घर की
लेकिन
चीजें दुनिया भर की
फिर
वो ही बारिश का मौसम
खस्ता
हालत फिर छप्पर की
रोज़
सवेरे लिख लेता है
चेहरे
पर दुनिया बाहर की
पापा
घर मत लेकर आना
रात
गये बातें दफ्तर की
बाहर
धूप खडी है कब से
खिडकी
खोलो अपने घर की
-विज्ञान व्रत
2 comments:
आम बात खास अंदाज में.
बहुत सुन्दर रचना
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