Monday, March 10, 2008

दलित धारा के कवि ओम परकाश वाल्मीकि की कविता

ठाकुर का कुआँ

चुल्ला मिटटी का
मिटटी तलब की
तलब ठाकुर का ।
भूक रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का

बेल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फसल ठाकुर की

कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलियान ठाकुर के।
फ़िर अपना क्या ?
गाओं ?
सहर ?
देश ?
हिन्दी मी दलित साहित्य की स्थापना से काफी पहले पर्कसित ओम परकाश वाल्मीकि की कविता पुस्तक - "सदियों का संताप" दलित धारा के साहित्य की एक महत्वपूर्ण पुस्तक हे। ठाकुर का कुआँ सब्ग्रह की पहली कविता हे जो उसी चेतना का पर्तिनिधितव करती हे, परवर्ती डोर मी जिसे दलित धरा के रूप mearkasitHindi मी जन जाने लगा

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