इब्बार रब्बी और भगवत रावत, जिन्होंने हाल ही में अपने-अपने ढंग से दिल्ली को परिभाषित किया.
दिल्ली पर भागवत रावत की कविता “नया ज्ञानोदय” मैं पर्कासित हुई थी और इब्बार रब्बी की कविता “वाक”
मैं. यहाँ इब्बार रब्बी के संग्रह – “लोग बाग” से एक और कविता हैं जिसमें उसी दिल्ली की उनके भीतर
बसी छवी दिखाई देती है. भगवत रावत की कविता उनके संग्रह “निर्वाचित कविताओं” से लिया गया
है. इसे पूर्व ये कविता उनके अपने कविता संग्रह “ऐसी कैसी नींद” में सम्मलित थी.
दोनों ही कविताएँ अपने परिवेश के प्रति लगाव और जुडाव का उदाहार्ण है. यह महज संयोग नहीं बल्कि दो
सचेत और गंभीर नागरिकों का वक्तव्य भी .
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