खील के दाने
उछालते कूदते, फर्श पर ही
सो जाते
संभाले नही जाते खील के दाने
मेह्नात्काशों के घरों में
तारों की तरह जगमग रहें
खील के दाने
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खील के दानों सबको पुगना
कड़े हाथों आना
बोरों से लगते हुए आना
ठगने वाले रंगीन डिब्बों मी कभी नही आना
राजेश सकलानी जिन्दी कविता के महाताव्पूर्ण कवि हें। "सुनता हूँ पानी गिरने की आवाज" इनकी कवितों की पुस्तासे पाठक अच्छे से परिचित हें।
2 comments:
kavitayen bahut achchi lagin.
खूबसूरत कविता
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