Monday, March 10, 2008

तेलगु के क्रन्तिकरिकवि वर्वारा राव की kavita

वसंत कभी अलग होकर नही आता

वसंत कभी अलग होकर नही आता
ग्रीष्म से मिल कर आता हे।
झरे हूउए फूलों की यद्
शेष रही कोपलों के पास
नई कोपलें फूटती हें
आज पत्तों की ओत में
अद्रिशय भविष्य की तरह

कोयल सुनती हे बीते हूए दुःख का माधुर्य
परतीचा के चानों की अवधि बढकर स्वपन समय घटता हे।

सारा दिन गरम आकाश में
माखन के कोर सा पिघलता रहता हे चाँद ।
यह मुझे केसे पता चलायादें, चांदनी कभी अलग होकर नही आती
रत के साथ आती हे।

सपना कभी अकेला नही आता
व्यथाओं को सो जन होता हे

सपनों की अंत तोड़ कर
उखड कर गिरे सूर्य बिम्ब की तरह
जागना नही होता।

आनद कभी अलग नही आता पलकों की खली जगहों में
वह कुछ भीगा सा वजन लिए
इधर-उधर मचलता रहता हे।

"सहस गाथा क्रांतिकारी कवि वर्वारा राव ख कविअतों का हिन्दी मी पर्कसित कविता संग्रह हे। ससी नारायण स्वाधीन एवम नुस्रात्र मोहियोद्दीय ने कविताओं का अनुवाद हिन्दी मी किया हे।

2 comments:

KAMLABHANDARI said...

vijay ji ur blog is great.
aapka blog hindi ko badawa deta hai or hume bhi hindi ke prati jagrok karta hai.aapka sangrah bhi bahut hi accha hai .

विजय गौड़ said...

dhanyavad kamla ji. aapki partikirya utsah badane wali he. punh aabhar.