कविता, सहमति और असहमति जताती दृढ़्तायें हैं, कहने वाली रेखा चमोली की कविताओं में प्रेम की ताजगी से भरपूर उत्साह पर्वतों से निकलती किसी ताजा नदी की तरह बरबस ध्यान खींचता है. पहाड की जिन्दगी के बिम्बों से भरपूर इन कविताओं की सादगी में जीवन की सहज गतिविधियां जिस तरह दर्ज हुई हैं उन्हें देखकर आश्चर्य होता है. ये कवितायें एक स्त्री के नजर से दुनिया की बहुत मामूली किन्तु मह्त्वपूर्ण चीजों को दर्ज करते हुए स्त्री के होने की विडम्बना को भी उजागर करती हैं.
प्रस्तुति एवं चयन : नवीन नैथानी
प्रस्तुति एवं चयन : नवीन नैथानी
रेखा चमोली
कविता
कविता नहीं है सिर्फ कुछ शब्द या पंक्तियॉ
कविता
सहमति और असहमति जताती दृढताऍ हैं
रुंधे हुए गले में रुकी हुई पीडाऍ हैं
सच्चाई को हारता देख
बेबस लोगों का बिलाप हैं
तो बार-बार गिरने पर
फिर-फिर उठने का संकल्प भी हैं
कविता अपने बचाव में हथियार उठाने का विचार हैं
साहस की सीढियॉ हैं
कविता उमंग हैं उत्साह हैं
खुद में एक बच्चे को बचाए रखने का प्रयास हैं।
पुकार
एक अनाम नदी
बादलों के पास, सागर का संदेशा पाकर
दौडती चली आयी
पर्वतों, घाटियों ,जंगलों ,बस्तियों को
लॉघती ,फलॉगती
कोई अवरोध उसे रोक नहीं पाया
सागर के पास आने से
पास आकर देखा
सागर उत्साह से हिलोरे मार रहा था
पर यह उत्साह सारी नदियों के लिए
एक समान था
नदी सागर में मिलकर अपना मीठापन खो चुकी थी
सागर नदी को खुद में समाकर बेहद प्रसन्न था
उसकी बॉहें फैली हुयी थीं
बाकि सारी नदियों के इन्तजार में
बादल उसके संदेशे लिए आ जा रहे थे।
शुभ संकेत
गर्भ में
ज्यों ही पनपता है
स्त्री शिशु
एक अदृश्य शिकायत पेटी भी
बॅध जाती है उसके साथ
उसकी उम्र के साथ ही
बढता जाता है जिसका आकार
और इसमें सिवाय उसके
सारी दुनिया दर्ज करा सकती है
अपनी शिकायतें
उसके इस दुनिया से जाने के बाद भी
इन शिकायतों को नष्ट नहीं किया जाता
बल्कि किसी इतिहास की पुस्तक की तरह
जब तब अन्य महिलाओं के बीच
पढा जाता है
जिससे वे सबक लें
और उनकी शिकायत पेटी में
दर्ज हों
कम से कम शिकायतें
पर ये शिकायतें हैं कि
बढती ही जा रही हैं लगातार।
इन्तजार
ओ प्यारे सूरज
कहॉ छुप गए हो तुम
किसी लम्बी छुटटी पर गए हो क्या ?
माना कि
हरियाली
बारिश
भीगना
उपजना
लहलहाना
बेहद पसंद है मुझे
पर तुम्हारे बिना ये सब मनभावन कहॉ ?
तुम्हारे बिना
रपटीले हो गए हैं रास्ते
जिन पर से गुजरते हुए
भारी बोझ और गीले तन के साथ
गिरती पडती हैं घसियारिनें
ग्वालों को छानी से गॉव आने तक
जान पर खेलना पडता है
स्कूली बच्चे
गाड-गदने पार करते हुए
गिर-पड जाते हैं
खेतों से खर-पतवार हटा-हटा कर थक गयी हैं बहू-बेटियॉ
छोटे बच्चों के गदेले-पजामें
सुखाने का जतन करते-करते परेशान हैं मॉए
और पहाड
उसे तो मानो दरकने का
एक और बहाना मिल गया है
नदी का गुस्सा अपने चरम पर है
ऐसे में
ओ प्यारे सूरज !
आओ
और भर दो सारी घाटियॉ, खेत-खलियान
घर-ऑगन उजली स्वच्छ धूप से।
11 comments:
har kavita kuchh khaas hai
बहुत सुंदर प्रस्तुति
अच्छी कविताएं..... बहुत बहुत बधाई।
अच्छी कविताएं..
in kavitaon me sirf kavita ka ras nahi balki vastusthiti ka bhaav aur man ki peeda spasht jhalak rahr hain. Suraj ka intezaar hum sabhi ko barsaat me rahta hai, par uski abhivyaktie itni khubsurti se ki hai chmoli G ne....... bahut sundar!! badhai!
बहुत अच्छी कविताएं |बधाई कवयित्री को |
सुन्दर कवितायें।
कविताएँ अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती हैं। कविताओं में जहाँ स्त्री जीवन की विडम्बनाएं हैं वहीं परिस्थितियों से लड़ने की दृढ़ता भी। अपनी बात कहने का आपका अपना अंदाज़ है। बहुत अच्छी रचनाओं के लिए बधाई।
bhut bhut aabhar sathiyon .
आपके ब्लाॅग को लगभग साल भर से फालो कर रही हूं। आप काफी मेहनत करते हैं। मैं ब्लागर्स की दुनिया में नयी हूं। कृपया मेरे ब्लाग पर भी आएं।
धन्यवाद!
कृति
srijan@riseup.net
www.kritisansar.noblogs.org
आपके ब्लाॅग को लगभग साल भर से फालो कर रही हूं। आप काफी मेहनत करते हैं। मैं ब्लागर्स की दुनिया में नयी हूं। कृपया मेरे ब्लाग पर भी आएं।
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