बीच का आदमी सतत रचनारत रहने वाले वरिष्ठ कथाकार मदन शर्मा का ताजा
उपन्यास है। हाल ही में उपन्यास से गुजरने का अवसर मिला। अपने शीर्षक की अर्थ ध्वनि
को प्रक्षेपित करती उपन्यास की कथा में भले भले बने रहने की मध्यवर्गीय प्रवृत्तियो
को अच्छे से सामने रखती है। मदन शर्मा के कथा विन्यास की खूबी संवादों भरी भाषा में
परिलक्षित होती है। पात्रों की सहजता एवं स्वाभाविकता वातावरण के साथ जन्म लेती
है। कारखाने के जन जीवन को करीब से देखने वाले उपन्यासकार मदन शर्मा के उपन्यासों
से गुजरना एक ऐसा अनुभव है जो बहुत बगल से गुजर जा रहे समय को देखने समझने की
दृष्टि देता है। उनके उपन्यास का एक छोटा सा अंश यहां प्रस्तुत है।
वि गौ |
सभी कुछ बदस्तूर जारी था। आठ से पांच तक साधारण डयूटी, जिसमें एक से दो बजे तक लंचब्रेक और शाम, पांच से सात तक ओवरटाइम। वही मशीनों की कीं कीं और चीं चीं, लगातार खटखट, वही वर्कर लोगाों का आपसी गालीगलौज, मुक्कम-मुक्का, अश्लील मज़ाक और सुबह से शाम तक 'ऊपरवालों के साथ नाज़ायज़ रिश्तेदारियां क़ायम करना। वही अधिकारी वर्ग के उल्टे-सीधे और मूर्खतापूर्ण आदेश और निदेश, वही लम्बी लम्बी बहसें और तकरार... अरे मेरा काम तो सबसे अधिक हुआ था, फिर पीस वर्क प्राफिट, दूसरों को कैसे अधिक मिला?... लो, मेरा टूल फिर चोरी हो गया। मैंने अभी अभी ग्राइंड करके, यहां फ़ेस-प्लेट पर रखा था... उसका मिलिंग कटर ब्लंट हुआ पड़ा है और वह भद्र पुरूष बिना देखे ही कट देता चला जा रहा है... मुझे इस बार साबुन की टिकिया क्यों नहीं मिली? हाथ कैसे धोऊंगा?... उसकी मशीन का पानी बदला था। मगर यहां तो... मेरा काम इतना बढि़या बना, तब भी इंस्पेक्शन वालों ने पास नहीं किया। उन्हेें चाय की ट्रे और समोसे जो नहीं पहुंचाये गये... मेरा ट्रेडटेस्ट, मालूम नहीं कब होगा! छह महीने से ये लोग झांसा दिये जा रहे हैं! ... भर्इ वाह! उसका दो बार प्रमोशन हो गया! यह होता है रिश्तेदार होने का फ़ायदा!... आप कुछ करते क्यों नहीं? क्यों नहीं कुछ करते?
गरदन उठा कर देखा, लोकराम खड़ा है।
- बुलाया है? मैंने जानते हुए भी पूछा।
-फौरन पहुुुंचने को कहा है।
- और कौन-कौन हैं वहां?
-अकेले हैं इस वक़्त तो।
-चलो, मैं आ रहा हूं।
वह हर रोज़ की तरह, कुर्सी पर तना बैठा था। काग़जों पर टिप्पणियां लिखने और हस्ताक्षर करने के बीच ही, वह मुझ से बोला, - क्या पोज़ीशन है आप के ग्रुप की इस महीने?
-पोज़ीशन ठीक है सर।
-ठीक का मतलब? टारगेट पूरे हो जायेंगे या नहीं?
-ख़याल तो यही है, कि हो जायेंगे।
-ख़याल? वह क्या होता है? मुझे पक्की बात बताओ।
-एक घंटे तक, चेक करकेे मैं आप को पूरी लिस्ट दे दूंगा।
-स्पेयर आर्डरस में भी ढील नहीं होनी चाहिये।
-इस बारे में आप निशिचंत रहें।
-ठीक है, चेक करने के बाद, लिस्ट बना कर दीजिये।
एक घंटे से भी कम समय में, मैं सूची तैयार करके पुन: मैनेजर के कार्यालय में उपसिथत हो गया।
उसने सूची पर सरसरी नज़र दौड़ार्इ। महसूस हुआ, वह संतुष्ट नहीं हुआ। वैसे कोर्इ अप्रसन्नता भी उसने व्यक्त नहीं की।
-अच्छा, ठीक है। ऐसा करना... मैं जहां जहां पेंसिल से लाल निशान लगा रहा हूं, ये काम सबसे पहले निकलवा देना।
-राइट सर।
मैं वापिस दरवाज़े तक ही पहुंचा था, आदेश मिला, -ज़रा रूकिये।
मैं पहले की तरह, फिर मेज के समीप जा खड़ा हुआ।
-मुझे एक बात याद आ गर्इ, बैठिये।
मैं 'थैंक्स कह कर बैठ गया।
वह कुछ सोचने लगा। फिर बोला, -उस लड़के का क्या रहा?
-जी?
- अरे भर्इ, वह खू़बसूरत और तेज़ तर्रार-सा लड़का, क्या नाम उसका?
-अनिल?
- वही... कुछ पता चला उसका?
- कुछ पता नहीं चला सर।
- सो सैड! उसके घर वाले तो बहुत परेशान होंगे?
- बहुत ही बुरी हालत है उनके घर में!
- कौन कौन हैं घर में?
- बूढ़ी मां और दो बहनें हैं।
- एक तो वही, जो उस दिन मेरी कोठी पर आर्इ थी?
- जी। दूसरी उससे छोटी है।
--हूं..., कह कर वह पेपर व्हेट से खेलने लगा। फिर बोला, - तो उनके घर में कैसे चल पा रहा है?... हम लोगों को उन बेचारों की कुछ मदद करनी चाहिये। डिपार्टमेंट की तरफ़ से तो उन्हें अभी कुछ भी नहीं मिल सकता।
- वही तो परेशानी है सर। थोड़े से पैसे सेक्शन वालों ने इकटठे करके ज़रूर भिजवा दिये थे।
- उससे भला कितने दिन चलेगा? आपने क्या सोचा इस बारे में?
- इस बारे में, मेरा तो कुछ दिमाग़ काम नहीं कर रहा।
- तो... अच्छा, मैं बड़े साहब से बात करूंगा। लड़कियां कुछ पढ़ी लिखी हैं?
- बड़ी इन्टर पास है और छोटी इन्टर कर रही है।
- अच्छा... देखो, क्या होता है। बड़े साहब से बात करके ही कुछ बताउंगा।
मैं वहां से उठ कर बाहर आया। विश्वास नहीं हो पा रहा था, यह वही एन0 मोहन है!
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-10-2015) को "हमारा " प्यार " वापस दो" (चर्चा अंक-20345) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bahut badhiya varnan, ek gumshuda vyakti ki bharpai ka
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