Thursday, April 29, 2010

हरजीत की गज़लें

पिछली पोस्ट में नवीन मैठाणी जी ने हरजीत सिंह का एक पोस्टर लगाया था। इस पोस्ट में मैं उनकी दो गज़लें लगा रही हँ।

1.

जो अपने खून में जारी नहीं है
अदाकारी अदाकारी नहीं है

सभी फूलों में जितना खौफ है अब
ख़िजाँ की इतनी तैयारी नहीं है

ख़ला में जो भी मेरे हमसफर हैं
कोई हल्का कोई भारी नहीं है

निकलकर घर की दीवारों से बाहर
कोई भी चारदीवारी नहीं है

सभी मेहनत से बचना चाहते हैं
वगरना इतनी बेकारी नहीं है

मैं उनके खेल में शामिल हूँ लेकिन
वो कहते हैं मेरी बारी नहीं है

2.

उसके लहजे में इम्तिहान भी था
और वो शख्स बदगुमान भी था

फिर मुझे दोस्त कह रहा था वो
पिछली बातों का उसको ध्यान भी था

सब अचानक नहीं हुआ यारों
ऐसा होने का कुछ गुमान भी था

देख सकते थे छू न सकते थे
काँच का पर्दा दरमियान भी था

रात भर उसके साथ रहना था
रतजगा भी था इम्तिहान भी था

आई चिड़ियाँ तो मैंने ये जाना
मेरे कमरे में आसमान भी था

हरजीत सिंह

7 comments:

Dinesh Dadhichi said...

दोनों ग़ज़लें बहुत खूबसूरत हैं. पहली ग़ज़ल में 'वर्ना' के स्थान पर 'वगरना' होना चाहिए.

Shekhar Kumawat said...

bahut sundar

Vineeta Yashsavi said...

Dinesh Dadhichi ji galti sudhar di hai... batane ki liye shukriya...

पारुल "पुखराज" said...

देख सकते थे छू न सकते थे
काँच का पर्दा दरमियान भी था

आई चिड़ियाँ तो मैंने ये जाना
मेरे कमरे में आसमान भी था

vaah!

अमिताभ मीत said...

आई चिड़ियाँ तो मैंने ये जाना
मेरे कमरे में आसमान भी था

क्या बात है !! बेहतरीन शेर है !!

अजित वडनेरकर said...

बेहतरीन।
हम हरजीत के शैदाई हैं।

फूल यहां पथरीले हैं
पत्थर सब रेतीले हैं
दिल जंगल है गहरा सा
जिसमें चंद कबीले हैं

प्रदीप कांत said...

आई चिड़ियाँ तो मैंने ये जाना
मेरे कमरे में आसमान भी था

बढिया