डा अतुल शर्मा
द मिनिएचरिस्ट आफ जूनागढ़
21 अक्टूबर 2023 की शाम दून लाईब्रेरी, देहरादून मे एक ऐसी फिल्म दिखाई गयी जो भारत पाक विभाजन पर केन्द्रित थी / पर इसके सादे और खामोश एक्स्प्रेशन मे दर्द भरा था, हर संवाद और दृष्य, ठहरे हुए और सादगी से आगे बढ़ रहे थे,, जिसकी अदृश्य पीड़ा और चीख महसूस की जा सकती थी,,,
पाकिस्तान जा रहे मुसव्विर और परिवार से एंटीक सामान, मकान, खरीदने खरीदार किशोरी लाल बिक्री के कागज़ पर हस्ताक्षर लेने आता है और उसकी मुलाकात एक अंधे मिनिएचर आर्टिस्ट से हो जाती है / वह जो पेंटिंग उसे दिखाता है वह दर असल कोरे कैनवास ही होते हैं,,, क्योंकि बेशकीमती मिनियेचर तो उनकी पत्नी और बेटी ने बेच दिये थे,,, स्थिति सामान्य करने के लिए/ खरीदने वाले किशोरी लाल के प्रति पहले घृणा भाव दिखता है पर जब वह बूढ़े आर्टिस्ट के कहने पर तसवीर की तारीफ नही करता जो कोरे कागज ही होते है तो बेटी के इशारे को समझ कर वह कहता है कि चुप्पी ही जुबान है,,,, /
ऐसे बहुत से अद्भुत संवाद है इसमे / जब वह जाने लगते है तो वह कहते हैं कि जब स्थित सामान्य हो जायेगी तो हम फिर आयेगे और अपना मकान तुमसे खरीद लेगे,,, पेशगी अन्दर रखी है,,,, जब खरीदने वाला उस पेशगी को देखता है तो वह आर्टिस्ट के हाथों से बनाई राधा कृष्ण की तसवीर होती है,,,,
शुरु मे जब वह अपनी बेटी नूर के साथ चाय पीते है तो कहते है कि प्याले मे आखिरी घूट छोड़ देना क्यो कि वह जूनागढ़ की याद दिलाती है और वापसी की भी,,, ऐसा ही कुछ अभूतपूर्व संवाद थे ये,,,,
विभाजन पर केन्द्रित इस फिल्म मे नसीरुद्दीन शाह, ने बेहतरीन अभिनय किया / साथ ही सभी ने परिपक्व अभिनय किया,,,, जिनमे,,,, राशिका दुग्गल, राज अर्जुन, पद्मावती राव उदय चंद्र, शामिल है/ संगीत और वातावरण के साथ एडिटिंग बेहतरीन थे /
निर्देशन कौशल झा का था /
फिल्म आधे घंटे की थी पर भाई बीजू नेगी द्वारा उसपर दर्शको से चर्चा करने की सार्थक पहल यादगार रही / हिन्द स्वाज्य की टीम ने जगह जगह इसे और अन्य फिल्म व विभिन्न विधाओं को प्रदर्शित व चर्चा करने का भी निर्णय लिया /
इसमे चन्द्र शेखर तिवारी, विजय भट्ट हरिओम पालीअरुण कुमार असफल , इन्देश नौटियाल और युवाओं ने सक्रिय भागीदारी की /
(सभी तस्वीरें इंटरनेट से साभार दी जा रही हैं)
1 comment:
सुंदर समीक्षा
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