एक समय तक मैं नवीन की कहानियों का घनघोर आलोचक रहा। खासतौर पर ‘पारस’ कहानी के छपने से पहले तक। ‘पारस’ कहानी जब पहली बार पढ़ी तो एक बारगी मैं ठिठक गया। वह ऐसी कहानी है जिसने मुझे बहुत गहरे तक प्रभावित किया। उस दिन मुझे अपनी डायरी में दर्ज करना पड़ा, ‘शायद मैंने नवीन की कहानियों के पाठ गंभीरता से करने में कोताई बरती है।‘ हिंदी कहानियों में इतनी कल्पनाशीलता, बल्कि हिंदी में ही क्यों, किसी अन्य भाषा में भी इतनी कल्पनाशीलता की कहानी मैंने पहले कभी नहीं पढ़ी थी और सच कहूं तो उसके बाद भी आज तक नहीं पढ़ी। कहानी का पात्र खोजराम पारस पत्थर खोजने के लिए अपने पांव में घोड़े की नाल ठोक लेता है। वह पारस पत्थर से अनभिज्ञ है। सिर्फ इतना जानता है कि वह एक ऐसा पत्थर है जो छूने मात्र से लोहे को सोने बदल देता है। मेरे सामने सबसे पहला सवाल यह उभरा था कि आखिर नवीन अपने पात्र खोजराम की मार्फत पारस पत्थर क्यों खोजना चाहता है ? कहानी के पात्र खोजराम के भीतर तो सोने की वैसी चाहत का कोई संकेत भी नहीं कि वह दुनिया की समृद्धि का मालिक हो जाना चाहता हो। जबकि समकालीन दुनिया में सोना तो समृद्धि का प्रतीक है। उधर कहानी में जो संकेत है वे तो खोजराम को जिस चीज से समृद्धी का सुख पहुंचा सकते हैं, वहां तो प्रेम की चाह है। विवाह योग्य कन्या की तलाश है। फिर खोजराम पूंजी के विस्तार के से वैभव को पैदा कर सकने वाले पारस पत्थर की खोज में अपनी लंगड़ाहट के बावजूद ऊबड़-खाबड़ ढंगार की ऊंचाइयों को नापने के से नशे की गिरफ्त में क्यों चला गया आखिर ? नवीन की कहानी ‘पारस’ ने मुझे ही नहीं बहुतों को प्रभावित किया। बाद में उस कहानी को रमाकांत स्मृंति सम्मान से सम्मानित भी किया गया। ‘पारस’ के बाद ही नवीन ने ‘ढलान’ लिखी थी। 'हंस' में प्रकाशित नवीन की सबसे पहली कहानी का शीर्षक चढ़ाई था। ‘ढलान’ कहानी का पहला पाठ करने का अवसर मुझे मिला। मैंने कहानी को ‘पारस’ के पाठ की रोशनी में ही पढ़ा और कहानी पर अपनी राय देते हुए कहा कि नवीन भाई तुम तो गजब के कथाकार हो। यार तुम्हारी इस कहानी में पात्र एक नदी को खोजने जिस तरह से जा रहे हैं, लगभग निरुद्देश्यज से दिखते हुए, उस तरीके का खोजना हिंदी कहानियों में बहुधा दिखाई नहीं देता। दूसरी दिलचस्प बात है कि तुम भी उस खोजने को एक सहज मानवीय जिज्ञासा के तहत रख रहे हो। कहन की यह सादगी जो अर्थ खोल रही है उसे ‘पारस’ के पाठ के साथ ही जोड़कर समझा जा सकता है। यानी,एक नदी जिसका रास्ता सबसे लंबा रास्ताा होता है, तुम्हारी कहानी उस रास्ते की खोज में मिलने वाली असफलताओं के बावजूद बिना थके उसे खोजते रहने की प्रेरणा दे रही है। सच, तुमने दुनिया के बदलाव के रास्ते की खोज पर बहुत ही खूबसूरत ढंग से कहानी कही है। मेरी बातों को सुनने के बाद खुश होने की बजाय, कमबख्त नवीन सकपका गया। और अपने अंदाज में खिल खिला कर हंसते हुए कहने लगा। इसका मतलब मुझे इस कहानी को अपने लिखे हुए से हटा हुआ मान लेना चाहिए और ऐलानिया ढंग से कहा कि वह ऐसी कहानी को सुरक्षित नहीं रखेगा जो इतनी आसानी से खुल जा रही हो। मुझे नवीन भाई की घोषणा पर आश्चार्य तो नहीं हुआ लेकिन इस जिदद पर गुस्सा आया कि वह इतनी अच्छी कहानी को नष्ट क्यों कर देना चाहता है। मुझे अपने पर भी गुस्सा आया कि मैंने कहानी का ऐसा पाठ ही क्यों किया और यदि कर भी लिया था तो नवीन भाई के साथ शेयर क्यों किया। मुझे इस बात का ध्यान रखना ही चाहिए था कि वह तो उस तरह के फूल के स्वभाव का व्याक्ति नहीं जो अपनी तारीफ से खिल जाए, बल्कि छुई-मुई पत्तियों सा है जो तारीफ की छुअन भर से अपने को सिकोड़ लेने में माहिर हो। बार-बार की मेरी गुजारिशों के बावजूद नवीन भाई ने उस कहानी को कहीं नहीं भेजा छपने के लिए। यह भी सच है कि मेरी उस प्रतिक्रिया और नवीन की घोषणा के बाद कहानी का कोई दूसरा पाठक भी पैदा नहीं हो पाया, क्योंकि लिखी गई वह कहानी फिर कभी सामने नहीं आई। नवीन भाई ने कभी नहीं चाहा उनकी कहानियों के पाठ आसानी से खुल जाएं। वे कुछ अबूझ बनी रहें और आप उनके घोर आलोचक बने रहे तो नवीन सचमुच का सौरी रच सकते हैं। पर उनकी कहानियों के पाठ इतनी आसानी से खुल जाए जैसे पारस में खुल गया था और पाठकों ने नवीन के सौरी को किसी कल्पना के भूगोल में ही नहीं रहने दिया बल्कि उसे उस एक ऐसे गर्भ ग्रह में बदल दिया जहां एक स्त्री बच्चे की चाह कहानी में चमकती हुई दिखने लगी, तो नवीन को असुविधा होने लगती है। नवीन के पाठक जानते होंगे कि पारस के बाद नवीन ने बहुत ही कम कहानियां लिखी हैं। एक लम्बी खोमोशी में होने की वजह को तलाशने में बेशक वे खुद कोई वजह न तलाश पाएं लेकिन कहीं यह भी एक कारण तो नहीं कि पारस ने उनके भीतर को जिस तरह से समाने रख दिया है अब लाख चाहकर भी वे अपने लेखन में उसे छुपाए नहीं रख सकते। अब देखो न उस पहले ड्राफ्ट वाली ‘ढलान’ को इतने सालों बाद अंत में कुछ बदलाव सा कर देने के बाद भी वे कहां छुपे रह पा रहे हैं। मुझे खुशी है, नवीन अपने उन वर्षों पहले किए गए ऐलान के बाद ‘ढलान’ कहानी को फिर से लिख पाए। ‘प्रभात खबर’ के दीपावली विशेषांक-2018 में कहानी प्रकाशित भी हुई है। यहां कहानी अपने पहले ड्राफ्ट के बदले हुए रूप में है, आसानी से खुल नहीं रही है। लेकिन नवीन को जान लेना चाहिए कि खोलने वाले फिर भी खोल देंगे। क्यों कि नदी तक न पहुंच पाने की पहली कोशिश लड़के और लड़की को निराश नहीं कर पा रही है। वे निराशा के साथ नहीं बल्कि इस उम्मीद के साथ वापस लौट रहे हैं कि दोबारा रास्ता खोज पाएंगे। ‘लड़ना है भाई यह तो लंबी लड़ाई है’, भाई निरंजन सुयाल की कविता पंक्तियां याद आ रही है।
खैर, नवीन भाई से गुजारिश कि वे अब अपने भीतर को छुपाने की
चेष्टा करना छोड़कर सतत लिखना शुरु करें।
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ढलान
नवीन कुमार नैथानी
नदी तक पहुँचने की हड़बड़ाहट में उन्होंने गलत पगडंडी पकड़ ली.यह संकरा रास्ता था और ढलान तेज थी.वे अगल-बगल नहीं चल सकते थे.उन्हें आगे-पीछे होना पड़ा.लड़का आगे निकल गया और लड़की पीछे रह गयी.
“ तुम्हारे हर काम में जल्द-बाजी होती है.”
इतना कहते ही लड़की रुक गयी. उसने सामने देखा-लड़का गायब था.
ढलान के दोनों तरफ झाड़ियाँ हवा के स्पर्श से बहुत सारे सुरों में बज रही थीं.उनका बजाना दिखायी पड़ता था.कभी वे तेजी से ऊपर की तरफ उठतीं और पस्त होकर नीचे लुढ़कने लगतीं.कभी वे एक ही जगह खड़ी होकर ऊपर-नीचे डोलने लगतीं-लड़की की तरह!
कुछ देर तो लड़की समझ ही नहीं सकी कि वह क्या करे-तेजी से दौड़ते हुए लड़के को पकड़े या पीछे लौट जाये.लौटने के खयाल से उसे शर्मिन्दगी महसूस हुई.नदी तक जाने का प्रस्ताव उसी ने किया था.
वे पहले भी कई बार उस जगह पर थे.नदी वहाँ एक झील की तरह बहती है- आहिस्ता-आहिस्ता सरकती हुई झील की तरहअते ! बिगड़ते हुए मौसम को देखकर वे वापस
लौटने को थे कि लड़की के मन में एक बेचैन
करने वाला खयाल उग आया.शायद नदी उस जगह झील सी न दिखायी दे.शायद बहुत छोटा समन्दर
वहाँ भर गया होगा.उसने यह खयाल लड़के के कान में डाल दिया.
‘क्या
तुम्हें यकीन है?’ लड़के को भरोसा नहीं हुआ.
‘चलो, चलकर देख लेते हैं’ लड़की ने कहा था.
फिर वे वापस लौटना भूल गये थे.मौसम खराब होता जा
रहा था और नदी तक पहुँचने की बेचैनी उन पर हावी होती जा रही थी.
“रुको!”
नज़रों से ओझल हो चुके लड़के को रोकने के लिये लड़की ने आवाज दी.
तभी
हवा बहुत तेजी से झाड़ियों को झिंझोड़ने लगी और ऊपर – बहुत छोटे आसमान में – बादल उमड़
घुमड़ करने लगे.लड़की घबरी गयी और वापस लौटने की बात भूलकर ढलान में तेजी से उतर ली.झाड़ियों
के ठीक बाद , दोनों तरफ, चीड़ के लम्बे और पतले पेड़ सीटियाँ बजा रहे थे- भागो,
भागो!
लड़की
की नज़र चीड़ के हिलते हुए नाज़ुक शरीरों पर पड़ी और उसके मन में लड़के के लिये चिन्ता
घुमड़ने लगी – छोटे से आसमान में बादलों की तरह.उसके कदम बेकाबू हो तेज चलने लगे.
“रुको!”
मौसम के बिगड़ते सुरों के बीच उसे एक आवाज सुनायी दी.उसे लगा , शायद यह लड़के की आवाज
है.
वह
रुक गयी.उसने सामने देखा.वहाँ ढलान नहीं थी.एक गहरी खाई थी.वह सिहर गयी.वहाँ
रास्ता खत्म हो जाता था.लड़का वहाँ नहीं होगा.उसने पीछे मुड़कर देखा – बाँयी तरफ एक
बड़ी चट्टान थी.वह उधर बढ़ गयी.नदी तक पहुँचने की बेचैनी में इतनी बड़ी चट्टान उसकी
नज़रों से कैसे गुम हो गयी!पतझड़ की आँधी में पत्ते उसके चेहरे से टकरा रहे थे –
बेचैन परिन्दों की छटपटाहट में टूटे पंखों की तरह.तभी एक सीटी उसके कानों में बजी –
हवाओं में उड़ते पत्तों और महीन मिट्टी के कोलाहल को भेदती हुई.उसने दाहिनी ओर देखा
– एक बड़े और चौड़े दरख्त के दरकने से हटी मिट्टी से बनी जगह पर वह दुबका हुआ था.
लड़का.तीन
कदमों के फासले पर.
लड़की
भी उस जगह में समा गयी.उसे अपनी ही साँस अपने सीने पर आसमानों से गिरती सुनायी दी.
“मैंने
तुम्हें नीचे जाते हुए देख लिया था.”लड़के की आवाज सुनते ही लड़की संशय की पिछली
यातनाओं से बाहर निकल आयी.
“तुमने
मुझे पुकारा क्यों नहीं?” लड़की फुसफुसाहट के स्वर में बोली – हवा से उठती आवाजों
के कारोबार में कुछ चोरी करती हुई.
“पुकारा
तो था,”लड़के ने जवाब दिया,“पर मेरी आवाज दब गयी.जहाँ से तुम लौटीं,मैं भी वहीं से
लौटा था.”
“सच!”लड़की
ने लड़के का चेहरा थाम लिया और उसे चूमने लगी.खाई में गिरते पत्तों का दृश्य उसकी
आँखों में कौंधता और वह कस कर लड़के का चेहरा थाम लेती.
“आँधी
अभी थम जायेगी.”लड़के ने उसके बालों को सहलाते हुए कहा,“तब हम चलेंगे.”
“कहाँ?”लड़की
अनजान बनी रही.
“वहीं...नदी तक.”
“नहीं”
“क्यों?”
लड़का इन्कार से चौंक गया.
“कोई फायदा नहीं.तब नदी वह नहीं रहेगी जिसे
देखने यहाँ तक उतरे.”लड़की की आवाज में गहरी हताशा थी.
“वह तो अभी होगी.”लड़के की आवाज में थोड़ा संशय
उतर आया.इसे दूर करने में उसने जरा वक्त लिया.
लड़की असमंजस में उसकी आँखों में देखती रह गयी.
“चलें.”
लड़के ने अचानक कहा.वह आदेश का स्वर भी हो सकता था और अनुमोदन की प्रत्याशा भी.
“चलो.”लड़की
ने बहुत धीरे से कहा.शब्द उसके होंठों से बाद में निकले,आँखों से पहले फूट पड़े.
अब
लड़की आगे थी और लड़का पीछे.
□□□
खाई के पास पहुँच कर लड़की रुक
गयी.
“मैं भी यहीं से लौटा था.”लड़के
ने उसके कन्धों को पीछे से पकड़ते हुए कहा.
“यहीं से लौटे थे?”लड़की ने पलटकर
पूछा.
“हाँ”
“अच्छा...”लड़की की आँखें शरारत
से चमक उठीं,“तो तुम डर गये थे.”उसने लड़के को हलका धक्का दिया.
“तुम खाई को देख रही हो?”
“खाई तुम्हारी सूरत से भी
ज्यादा अच्छी तरह दिखायी पड़ रही है.”
“तुम क्या कह रही हो?”
“तुम लौट क्यों गये थे?हम नदी
तक चलने के लिये उतरे थे.”
“हाँ”
“तो!”
“मैं
अकेला था.”लड़के ने हताश आवाज में कहा.
“आओ!”लड़की पलट गयी.
अगले ही क्षण लड़की वहाँ नहीं थी.
□□□
वह खाई में थी.लड़के को काफी देर बाद दिखायी दी.वह खाई में कैसे पहुँच गयी?कुछ
देर वह असमंजस में रहा. तो लड़की ने छलांग लगा ही दी.उसकी जिद के बारे में उसने
बहुत सुना था.कुछ देर पहले जब वह इस जगह पहुँचा था तो अपने पीछे दौड़ती लड़की लगातार उसके ध्यान में
बनी रही थी.लड़की ने खाई में कूदने से पहले
उसके बारे में सोचा होगा क्या?फिर उसे लगा कि नहीं,वह खाई में कूदी नहीं है,फिसल
गयी है.नहीं,वह फिसली नहीं है.अगर फिसलती तो उसकी चीख सुनायी पड़ती.उसे भरोसा हो
गया कि वह एक छलांग थी!जोखिम से भरी हुई.लड़के का दिल जोर से धड़कने लगा.
‘‘तुम वहाँ क्यों खड़े हो?”उसे
लड़की का उल्लास से भरा स्वर सुनायी दिया.
“तुम वहाँ क्यों उतर गयीं?”लड़के ने अपनी
हथेलियाँ मुँह के सामने कर लीं – आवाज को लड़की तक पहुँचाने के लिये.
“इतना
हैरान क्यों हो?”लड़की का प्रश्न जवाब में उठता हुआ आया.
“आगे
रास्ता कहाँ है?”लड़के ने कहा.
“आओ!”लड़की का स्वर खीज से भर उठा,“यहाँ बहुत
सारे रास्ते हैं.”
“कहाँ?”लड़के
ने फिर कहा,“बहुत खतरनाक ढलान है.”
“तुम्हें
नहीं पता”लड़की ने पुकार लगायी,“यहाँ आकर देखो.थोड़ी देर में आँधी रुक जायेगी.”उसकी
आश्वस्त पुकार में चुनौती भरी दृढ़ता थी.
“कैसे आऊँ?”लड़के को लगने लगा कि वहाँ तक पहुँचा जा सकता है.
“सीधा छलांग लगा दो.”लड़की का स्वर आत्म-विश्वास
से भरा था,“मैं तुम्हें थाम लूँगी.”
लड़के ने छलांग लगा दी.पैरों के नीचे मिट्टी थी
और महीन कंकर थे.क्षण भर को उसे महसूस हुआ कि वह संतुलन खो रहा है.दाहिनी तरफ एक
गिरे हुए पेड़ की जड़ दिखायी दी.उसने सहारे के लिये जड़ की तरफ हाथ बढ़ाया.तभी उसे
खतरा महसूस हुआ-शायद यह जड़ बहुत कमजोर हो.उसका बोझ न थाम सके और मिट्टी से बाहर
निकल आये;तब वह पेड़ के बोझ से खिंचा हुआ नीचे जा गिरेगा.लड़की बहुत पास थी.उसने
सहारे के लिये हाथ लड़की की तरफ बढ़ाया और तत्काल पीछे खींच लिया.उसकी चेतना ने ऐन
वक्त पर उसे चेता दिया – लड़की मिट्टी में दबी जड़ नहीं है.वह मिट्टी से अलग एक
समूची देह है.
□□□
लड़का जब ढलान पर गिरा तो उसके दोनों हाथ और
पैर मिट्टी में धंसे हुए थे.उसका चेहरा लड़की की हथेलियों में था.लड़के को अपनी
हथेलियों में जलन का अहसास बाद में हुआ- राहत देने वाली नर्म हथेलियों के स्पर्श
का अनुभव उसके चेहरे ने पहले किया.वह लड़की को बताना चाहता था कि उसके हाथ बेतरह जल
रहे हैं.उसके होंठ लड़की की हथेलियों पर थरथरा कर रह गये-उनसे आवाज नहीं फूटी.
लड़की
ने महसूस किया कि लड़का उससे कुछ कहना चाह
रहा है. आसमान में बादल बज रहे थे और उनकी आवाजों के बीच वह लड़के के होंठों की
थरथराहट को सुनने की कोशिश करने लगी.उसे महसूस हुआ कि लड़का उसकी हथेलियों पर होठों
से कुछ लिख रहा है.क्षण भर को वह खुश हो गयी.उसकी हथेलियाँ लड़के के होंठों का
संसार मापने लगी.वहाँ ताप बहुत ज्यादा था-पृथ्वी के गर्भ के तापमान से लड़की वाकिफ
थी.यकायक उसे लगा कि वह लावे में बदल जायेगी.उसने अपनी हथेलियाँ हटा लीं.
अगले
ही क्षण लड़का जमीन पर था-उसके सर के बाल लड़की के पैरों को छूने लगे.लड़की ने
अपने पैरों से उठती हुई सनसनाहट को महसूस
किया.कुछ देर तक वह समझ ही नहीं सकी कि अचानक यह क्या हो गया है!स्थिति की भयावहता
को समझ कर उसके भीतर से एक लम्बी चीख निकली-हवा में चीड़ के पेड़ों से निकली सीटियों
को दबाती एक बेचैन चीख!समुद्र की लहरों में टूटते जहाज से जीवन के गुम हो जाने की
आशंका में एक करुण पुकार!
लड़के की जीभ यक-ब-यक मुँह में भर आयी मिट्टी
के वजूद से चौकन्नी हो लड़ने की मुद्रा खोजने लगी.वह समझ गया कि पूरी तरह से गिर
चुका है.हथेलियों की जलन को भूल गया. अब उसके होंठ चिरमिराने लगे.वह मिट्टी से
चेहरा उठाने की कोशिश कर ही रहा था कि उसे लड़की की चीख सुनायी दी- उसके नजदीक और
सर के ठीक ऊपर!उसका चेहरा मिट्टीसे बाहर निकल आया और आँखों के सामने लड़की की देह
का धुंधला सा आकार उपस्थित हो उठा.
अपनी ही चीख से डरी हुई लड़की ने नीचे
देखा-लड़के का चेहरा ऊपर उठ रहा था.पूरी तरह मिट्टी से पुता हुआ.उस धूसर चेहरे में,
होंठों के ऊपर, लाल रंग की एक रेखा बन आयी जो धीरे-धीरे और ज्यादा सूर्ख होती जा
रही थी.
यह खून है!अचानक लड़की के दिमाग में कौंध हुई.
“अरे!”लड़की के मुँह से एक शब्द फूटा और वह घुटनों
के बल जमीन पर बैठ गयी.उसने लड़के के उठते हुए चेहरे को थाम लिया और वहाँ बैठ गयी
मिट्टी को हटाने लगी.
“मुझे उठाओ” लड़के ने कराहते हुए कहा.लड़की बेचैनी
के साथ उसके चेहरे से मिट्टी हटाने में जुटी रही.
“उफ!मुझे उठाओ.”लड़के ने फिर कहा.
लड़की घबराहट में थी.अब वह असमंजस में पड़
गयी.लड़के को कैसे उठाये.चेहरे से मिट्टी हटाने में जुटी उसकी हथेलियां थम
गयीं.बांये हाथ से वह लड़के के चेहरे को थामे रही.लड़के के चेहरे का बांया हिस्सा
साफ हो गया था.उसकी आँख के नीचे छोटा तिल साफ दिखायी पड़ रहा था.उस तिल के दिखने से
लड़की को लगा कि लड़के का चेहरा साफ हो गया है.वह उस तिल को चूमना चाहती थी.लड़के की
कराह सुनकर वह उसे उठाने की युक्ति खोजने लगी.उसने घुटनों को थोड़ा पीछे किया जमीन
पर लेट गयी.उसकी दूसरी हथेली भी लड़के के चेहरे पर आ लगी.उसकी हथेलियाँ लड़के के
चेहरे का भार महसूस करते हुए थरथरा रही थीं.उसने कोहनियां गीली मिट्टी में धंसायीं,अपने
शरीर को थोड़ा आगे बढ़ाया और उसका चेहरा लड़के के चेहरे के पास आ गया.लड़के की आँखों
से एक करुण याचना झाँक रही थी.लड़की उसके चेहरे पर ,ठीक तिल के ऊपर बेतहाशा चूमने
लगी.
“मुझे उठाओ!”लड़का फिर कराहा.लड़के की कराह
सुनकर लड़की फिर सहम गयी.वह लड़के को कैसे उठाये? इसके लिये उसे खुद उठना होगा.उसने
अपनी हठेलियां लड़के के चेहरे से हटाकर जमीन पर टिका लीं. लड़के का चेहरा फिर से
जमीन में जा गिरा-मिटी और कंकर के कर्कर स्पर्श में!
“तुम कैसे गिर गये?”लड़की के मुँह से कुछ शब्द
निकले जिन्हें सिर्फ वही सुन सकी.उसकी आवाज लड़के तक नहीं पहुउँच सकी-वह उसके
होंठों में ही दब गयी.वह समझ नहीं पायी कि यह सब –इतनी जल्दी और अचानक-क्या हो गया
है.तभी आसमान में बिजली देवदार की शाख की तरह कौंधी.लड़की ने अपनी हथेलियां कान पर
रख लीं.हथेलियों का परदा नाकाफी था.एक गड़गड़ाहट वहाँ देर तक बनी रही.बिजली के चमकने
पर लड़की चौंक जाया करती है.उसे पता भी नहीं चला कि कब और कैसे वह बैठ गयी थी.उसने
लड़के के दोनों कन्धे पकड़ लिये.
वह लड़के को उठाने की कोशिश कर रही थी.लड़के के
बदन का बोझ उसे भारी लगा.अपने कन्धों पर लड़की भारी बोझ उठाने की आदी थी.जंगल में
लकड़ी और घास के बहुत भारी बोझ उसके कन्दों पर उठ जाते थे.तब उसकी देह के सभी अंग
एक लय में गतिमान हो उठते.वह कन्धों पर बोझ को टिकाती-उसकी हथेलियाँ,घुटने और
पैरों के पंजे एक साथ हरकत में आते.धरती उसकी मदद करती और बोझ उसके ऊपर एक मक्खी
की तरह बैठ जाता.
अगर लड़का घास के बोझ की तरह होता तो वह उसे
अपने कन्धों पर रख लेती.लड़का घास नहीं है.
“उठो.”लड़की ने कहा.
“कैसे उठूँ”लड़के के चेहरे पर दर्द,बेचैनी और
छटपटाहट के बादल उतर आये.
लड़की ने उसे उठाने के लिये जोर लगाया.पैरों के
नीचे जमीन का गीलापन बाधा बन रहा था.उसके पैर जमीन में धँस गये.लड़के के कन्धों से
उसकी पकड़ ढीली हो गयी और लड़का फिर जमीन पर जा गिरा.
“उफ!”लड़की जोर से चिल्लायी.उसकी आवाज में कातर
प्रार्थना थी,‘‘हे भगवान!ये क्या हो गया!”उसकी आवाज गड़गड़ाहट में दब गयी.आसमान में
फिर बिजली कौंधी थी.लड़की के मुँह से एक चीख निकल पड़ी.
वह चीख लड़के को सुनायी दी.उसने
मिट्टी से चेहरा उठाने की कोशिश की.दर्द की तेज लहर उसके बदन से गुजर गयी.अब उसे
लगने लगा कि दर्द की अन्तिम सीमा वह झेल चुका है.इससे ज्यादा दर्द और क्या होगा!उसने
अपनी हथेलियों को मिट्टी में धंसाया और ऊपर उठने की कोशिश करने लगा.दर्द की लहर
उसे नीचे गिराये जा रही थी.उसने जबड़े कस लिये और दर्द को चुनौती देते हुए खड़ा होने
का प्रयास किया.दर्द बढ़ गया.लड़के की कोशिश भी बढ़ गयी.तभी उसे महसूस हुआ कि दर्द अब
सहन करने की तमाम सीमाओं को लाँघकर उसे नीचे गिराने वाला है.वह एक झटके के साथ उठ
खड़ा हुआ.
लड़के ने देखा-सामने लड़की खड़ी है.उसकी आँखें
बन्द हैं और हाथों से वह कानों को ढके है.लड़के को अब दर्द परेशान नहीं कर रहा
था.उसके समूचे शरीर पर अनगिनत सुईयाँ छेद कर रही थीं.लड़की के सामने खुद को खड़ा
पाकर उसे राहत महसूस हो रही थी.उसकी इच्छा हुई कि वह लड़की के कानों से हथेलियाँ
हटाकर कुछ बात कहे.वह एक कदम आगे बढ़ा और उसकी नजरें लड़की के पीछे चली गयीं.
वह स्तब्ध रह गया.
□□□
लड़की कगार के सिरे पर थी.उसके पीछे एक खड़ी
चट्टान थी.लड़की एक कदम भी पीछे हटायेगी तो नीचे जा गिरेगी-वहाँ सहारे के लिये घास
तक नहीं है.उसने लड़की को अपनी तरफ खींच लिया.
किसी सम्मोहन में दो कदम आगे बढ़ने के बाद लड़की
को अहसास हुआ कि वह लड़के की लहुलुहान बाहों की गिरफ्त में है.लड़के के धूसर चेहरे
से निकलते लहू को लड़की ने बहुत करीब से देखा.लड़के को संभालने के लिये वह अपने पैर
गीली जमीन पर मजबूती से टिकाना चाहती थी-तभी उसे अपने चेहरे पर मिट्टी का कंकरीला
स्पर्श महसूस हुआ जिसमें खून की गरमी थी.
“वहाँ देखो” हवा की नमी,मिट्टी की करकराहट और
खून की गरमी के बीच उसे लड़के की आवाज सुनायी दी.उसने समझा कि लड़का नदी के
पार-दूसरे पहाड़ पर बारिश की सूचना दे रहा है.
“वहाँ नहीं.उधर...अपने पीछे.”
लड़की ने थोड़ा खीज के साथ लड़के की तरफ देखा.
वह अभी तक लड़के की गिरफ्त में थी.लड़के ने अपना दाहिना हाथ लड़की से अलग किया-उसके
ठीक पीछे चट्टान की तरफ संकेत करते हुए.लड़की अब उसकी गिरफ्त से बाहर निकल आयी.
लड़के
की आँखों में भय था, आश्चर्य था और एक राहत थी.लड़की ने सबसे पहले उसकी आँखों में
राहत को पढ़ा, फिर उसके मुक्त हाथ का अनुसरण करते हुए पीछे देखा.
“हे भगवान!” पीछे देखते ही लड़की आश्चर्य और भय से चिल्ला उठी.
लड़के ने तभी लड़की को अपनी ओर खींच लिया.
“अब?”लड़के ने लड़की की अवाज को सुना.
“अब?”लड़की
ने लड़के की अवाज को सुना.
दोनों ने उस दिशा में नहीं देखा जिधर चट्टान
थी.दोनों ने उस दिशा में देखा जहाँ से उन्होंने एक दूसरे के पीछे छलांग लगायी थी.
वह एक बड़ी दीवार थी-मिट्टी और दरकी हुई जमीन से
बनी दीवार! उस पर चढ़ना असंभव था.
एक शब्द भी कहे बिना दोनों जान गये कि अब वापस
लौटना संभव न्हीं है.
“उधर
बारिश हो रही है” लड़की ने कहा.
“अगर बादल फट गया तो?”
“बादल ऐसे क्यों फटेगा?”
“अगर फट गया तो?”
“हम पानी और मिट्टी के रेले में बह
जायेंगे.” लड़की ने भय से आँखें बन्द कर लीं.
“अगर ऐसे ही रुके रहे तो भी मर
जायेंगे.”लड़के ने कहा.लड़के को कहीं रास्ता नजर नहीं आया.लड़की के पीछे चट्टानी ढलान
थी और बाँयी तरफ खाई.
छलांग लगाने से पहले लड़की को वह खाई दिखायी
नहीं दी थी.अगर दीख जाती तो छलांग नहीं लगाती.उसे तो उस ऊँचायी से वह जगह दिखायी दी थी जहाँ से एक पगडंडी नदी की तरफ
फूटती है.वह पगडंडी लड़के को भी दिखयी दी थी.उसका होना बहुत साफ नहीं दिखता था.वहाँ
सिर्फ एक रास्ते का आभास था.किन्हीं ज़मानों में वहाँ से लोग गुजरते होंगे.तब वहाँ
कोई रास्ता रहा होगा.
“अब एक ही रास्ता है”लड़की ने बाँयी उंगली खाई
के पार ढलान की तरफ उठायी,“वहाँ!”
“हाँ.”लड़के
ने कहा.
“हमें
वहीं चलना होगा.”लड़की अब शान्त थी.उसकी आवाज में धैर्य था,“हम अब ऊपर नहीं जा
सकते”
कुछ देर तक दोनों एक दूसरे की आँखें पढ़ते
रहे.लड़के ने लड़की की आँखों में भय देखा.लड़की ने लड़के की आँखों में लापरवाही देखी.
“नीचे
मिट्टी गीली है” लड़के ने कहा.
“हाँ
गीली है.” लड़की की आंखें आश्चर्य से फैल गयी.लड़के ने खाई में छलांग लगा दी.
□□□
वह
अनायास लगायी गयी छलांग थी.लड़के ने आँखें बन्द कर ली थीं.उसे अपना बदन बहुत हल्का
लग रहा था.उसका पूरा शरीर गीली मिट्टी से नरम हो आयी जमीन के ऊपर था.उसने आँखें
खोलीं तो नीचे वह पगडंडी दिखायी दे गयी.वहाँ वे फिसलते हुए पहुँच जायेंगे.तभी उसे
लड़की का ध्यान आया.उसने ऊपर देखा.लड़की नहीं दिखायी दी.
उसे
दिखायी दिया कि वह कितनी खतरनाक ऊँचाई से कूदा है!अगर थोड़ा भी इधर-उधर होता
चट्टानों से टकराकर बिखर जाता.लड़की कहाँ है? अब वह लड़की के लिये चिन्तित हो गया.
उस
सीधी ऊँचाई के ऊपर कहीं होगी.
“सुनो!” उसने जोर से आवाज लगायी,“तुम कहाँ
हो?”
थोड़ी देर तक वह जवाब की उम्मीद करता रहा.उसे
लगा कि अभी लड़की की आवाज सुनायी दे जायेगी.कुछ क्षण वह टुक लगाकर सुनता रहा –हवा
में वृक्षों की सरसराहट के सिवा कुछ सुनायी नहीं दिया.उसकी बेचैनी बढ़ गयी. हो सकता
है लड़की ने आवाज न सुनी हो.उसकी आवाज बीच में पहुँचकर खत्म हो गयी हो.हो सकता है
हवायें उसकी आवाज को नदी की तरफ ढलानों में खींच ले गयी हो.
“सुनो!” उसने और ताकत से आवाज दी.एक बार फिर लड़की
का नाम पुकारा.उसे चेहरे में मिर्च की तरह एक तीखी जलन महसूस हुई .उसने उंगलियां
चेहरे पर लगायीं तो वहाँ एक गरम गीलापन आ टकराया.वह समझ गया, यह खून है.
थोड़ी देर पहले की तमाम घटनायें उसकी चेतना में
एक कौंध की तरह उसकी चेतना में चमक गयीं-उसे हवा में छटपटाते दिखायी दिये,टूटे हुए रास्ते की ढलान दी,चट्टान
से खाई की तरफ बढ़ती हुई लड़की दिखायी दी.भय से वह काँपने लगा.उसे अपने पास की जमीन
घूमती दिखायी देने लगी.वह जमीन पर लेट गया और उसने आँखें बन्द कर लीं.
धप्प!उसके पास कोई चीज गिरी.उसे आँखें खोलनी
पड़ीं.ऊपर से मिट्टी सरक रही थी.एक पल वह गिरती हुई मिट्टी को देखता रहा.उसके गिरने
में एक लय थी. अचानक यह लय बिगड़ गयी...मिट्टी मलबे की शक्ल में गिरने लगी.उसके
गिरने में अजीब सी हड़बड़ाहट थी.आसन्न खतरे को देखकर लड़का उठ खड़ा हुआ.उसे अपने बचाव
के लिये फैसला करना था और समय कम था.अब वह जल्दबाजी में छ्लांग नहीं लगायेगा.उसे
किसी भी तरह पगडंडी तक पहुँच जाना है.उसने नीचे फिसलते हुए उतर जाने का फैसला
किया.
“ओ
माँ!” यह लड़की की आवाज थी.उसके ठीक पीछे.लड़की मलबे के बीच नीचे गिर रही थी-मिट्टी
के साथ.
लड़की
के गिरने के बाद भी बहुत देर तक ऊपर से मिट्टी गिरती रही-बहुत बारीक पर्त के
साथ.लड़का उसके नजदीक पहुँचा.वह बेहोश थी और उसका चेहरा मिट्टी से ढका था.वह उसे
पुकारने के लिये कोई शब्द ढूँढने लगा.फिर रुक गया.शायद लड़की उसकी आवाज सुनकर डर
जायेगी.
खड़े-खड़े
,कुछ किये बिना-कुछ न कर पाने की बेचैनी के साथ-लड़के को गुस्सा आने लगा.खुद पर झुँझलाहट
भी हो उठी.लड़की की बात पर, उसकी जिद के चलते, वे इस मुसीबत में कूद पड़े थे.अब उसे
बेहोश लड़की पर गुस्सा आने लगा.वह ऊपर से क्यों कूद पड़ी?अगर मिट्टी के ऊपर कोई
पत्थर होता तो उसके वजन तले वह उस ढेर मेम दब जाती.शायद लड़का भी उस मलबे की चपेट
में आ जाता.
हो
सकता है लड़की कूदी ही न हो.वह फिसल गयी हो.यह विचार आते ही लड़के का गुस्सा फिसल
गया.उसने लड़की के चेहरे पर लगी मिट्टी हटा दी.लड़की ने आँखें खोल लीं.
“हे
भगवान!”लड़के ने आसमान की तरफ देखते हुए एक लंबी सांस ली,फिर उसकी नजरें लड़की की आँखों
पर टिक गयीं,“तुम ठीक हो?”
लड़की कुछ नहीं बोली.वह लड़के के चेहरे को देखती
रही.पहले उसे एक धुंधला चेहरा दिखायी दिया-मिट्टी और ताजा जमे खून के बीच झाँकती
दो आँखें.चिन्ता और भय की सुरंग से बाहर निकलती हुई रौशनी के दो धब्बे.उस हलकी
रौशनी के उजास में लड़के के चेहरे की आकृति पहचान में आयी.लड़की को वह सब एक सपने की
तरह दिखायी दिया.
“तुम ठीक हो?”लड़के ने फिर कहा.
वह
कुछ कह रहा है.लड़की ने सोचा.उसने आँखें बन्द कर लीं.अब लड़का उसके नजदीक है.दोनों
एक दूसरे के साथ हैं.अब वे अकेले नहीं हैं.अब थोड़ी देर सो लिया जाये.लड़की की देह
शिथिल पड़ गयी.
“उठो”
लड़के ने फिर कहा.
लड़की
एक गहरी और निश्चिन्त नींद में चली गयी थी.आसमान से पानी की कुछ बूंदें गिरीं.
“बारिश आने वाली है”लड़का ने जोर से कहा.उसका चेहरा आँखों के पास दुखने
लगा.तभी बारिश उनके ऊपर गिरने लगी.मोटी-मोटी बूँदों में-धारासार!
लड़की ने चेहरे पर पानी की आवाज सुनी.उसने आँखें खोलीं.बारिश की चादर के बीच
उसे लड़के का धुंधलाया चेहरा दिखायी दिया.वह मुसकरायी.लड़के को वह मुसकराहट पहले
दिखायी दी.उसकी खुली आँखों पर नजर बाद में गयी.वह क्या कहे? सोचने में उसने कुछ पल
खो दिये.फिर कुछ कहने के लिये उसने होंठ खोले.
“ओ मां!”लड़के के मुंह से चीख निकली.वह कहना चाहता था,‘जल्दी उठो और
चलो.हमें अभी दौड़ना होगा.’ बारिश की मोटी और तेज बूँदें उसके चोट से सूजे चेहरे पर
मिर्च की तरह जलने लगीं. लड़की ने उसके चेहरे को हथेलियों से ढक लिया.उसकी उंगलियाँ
लड़के के चेहरे को छूने लगी.लड़का फिर दर्द से चीख उठा,“ओ माँ!”
लड़की हँस दी.फिर खिलखिलाने लगी.मिट्टी पर गिरती
बारिश की आवाज के बीच उसकी हँसी लकड़ी के फर्श में गिरते बर्तनों की तरह बजी.
“पागल हो गयी हो” अब लड़का क्रोध में था.उसकी
बेचैनी,झुंझलाहट,पीड़ा और दर्द लड़की की हँसी में एक साथ मिलकर उसकी चेतना में जा
गिरे.लड़की की इसी जिद के चलते वह यहाँ तक चला आया था.अब वह लड़की का एक शब्द नहीं
सुनेगा.वह मुड़ा और आगे बढ़ गया-उसके कदम दौड़ की हदों तक बढ़ने लगे.
लड़की उसके पीछे चलने की कोशिश करने लगी.उसे
महसूस हुआ कि कदम उसका साथ नहीं दे रहे हैं. उसे अब बैठ जाना चाहिये.बैठते
हुए लड़के को पुकारा,“रुक जाओ!”
लड़के ने लड़की की पुकार सुन ली.लेकिन उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा.उसे
लगा कि लड़की फिर शरारत कर रही है.अभी उसे रास्ता ढूँढना है.बारिश हलकी होने लगी
थी.आगे का धुँधलापन कुछ साफ होता दिखने लगा.उसने आसमान की तरफ देखा.आकाश का बहुत
छोटा टुकड़ा उसे दिखायी दिया.वहाँ बादलों का घनापन छितरा रहा था. लगता है थोड़ी देर
में बादल चले जायेंगे और आँधियां थम जायेंगी.फिर उसे ध्यान आया कि हवाओं की तेजी
तो बहुत पहले गुजर चुकी है!निराशा में उसने बाँयी तरफ देखा.उधर से एक पगडंडी का
धुंधला आकार दिखायी दिया.
“मिल
गया.” वह खुशी से चिल्लाया.उसे लगा कि यह बात अभी लड़की को बता देनी चाहिये.फिर उसे
ध्यान आया कि लड़की ने उससे रुकने को कहा था.वह पीछे मुड़ा.लड़की की धुंधली आकृति
दिखायी दी.दोनों के दर्म्यान एक बड़ा फासला बन गया था. वह उससे बहुत दूर उतर आया
था.शायद उसकी आवाज लड़की तक नहीं पहुँची.
“सुनो”उसने
एक बार फिर आवाज दी,“तुम मेरी आवाज सुन रही हो?”
लड़की ने उसकी आवाज सुन ली. लेकिन वह
उसे जवाब देने की स्थिति में नहीं थी.लड़के की आवाज में रास्ता पाने की खुशी उसकी
पकड़ में आ गयी .उसने उठने की नाकाम कोशिश की.
“हाँ...”लड़की कहना चाहती थी,“तुम आगे निकल जाओ.मैं तुम्हारे पीछे आ जाऊँगी”
दर्द भरी कराह उसके गले से निकली.वह उम्मीद करने लगी कि हवायें उसकी आवाज को
लड़के तक ले जा लें.बेचैनी में वह उसी जगह बैठकर अपने हाथ हिलाने लगी.
लड़के ने उसका हिलता हुआ हाथ देख
लिया.लड़की शायद फिर किसी मुसीबत में पड़ गयी है.वह असमंजस में पड़ गया कि उसे क्या
करना चाहिये?लड़की तक लौटे या पगडंडी तक पहुँचने का रास्ता खोजे...थोड़ी देर तक वह
उसी जगह खड़ा रहा.बुत की तरह.अचानक उसे ध्यान आया कि वापस जाने का रास्ता उनके पास
नहीं है.उसे पगडंडी तक पहुँचने का रास्ता खोजना होगा.
“सुनो!”उसने लड़की की तरफ आवाज
फेंकी,“वहीं रुकी रहो.हम बस पहुँच गये हैं.मैं रास्ता खोजकर वापस आ रहा हूँ.”
लड़की
तक आवाज पहुँची या नहीं;जानने का कोई जरिया उसके पास नहीं था. अब पगडंडी साफ
दिखायी दे रही थी लेकिन उस तक पहुँचने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.गीली
मिट्टी के सहारे शायद फिसलते हुए कोई रास्ता मिल जाये.इस बार उसे छ्लांग नहीं
लगानी है.बस फिसल लेना है.उसने अपना बदन पीठ के सहारे गीली मिट्टी को सौंपा और
आहिस्ता से नीचे की तरफ फिसलने की कोशिश करने लगा.शुरू में उसका बदन उसी जगह स्थिर
रह गया.उसके पांव मिट्टी को थामे हुए थे.उसे अभी पाँवों को आजाद करना होगा. उसने
पाँवों को आसमान की तरफ उठा लिया.अब वह फिसल रहा था.शुरु में उसे अच्छा लगा.फिर
उसके फिसलने की गति बढ़ने लगी.बढ़ती गति के साथ उसका डर भी बढ़ने लगा.उसने आँखें बन्द
कर लीं. उसकी आँखें तभी खुलीं जब फिसलना थम गया और पाँव किसी ठोस चीज से टकराये.
वह एक टूटे हुए पेड़ के तने से टकराया
था. वह उठ खड़ा हुआ .थोड़ा सा नीचे चलकर पगडंडी तक पहुँचा जा सकता था.यह पगडंडी
उन्हें नदी तक ले जायेगी...वह थोड़ा पीछे हटा.ऊचाई की तरफ.नदी दिखायी दे रही थी.वह
उस जगह के नजदीक था जहाँ नदी झील की तरह बहती है.वह वापस मुड़ गया ऊपर चढ़ने लगा.अब नदी साफ दिखायी दे रही
थी.उस जगह वह उसी झील की तरह दिखायी दे रही थी;आहिस्ता-आहिस्ता सरकती झील की
तरह.उसका पानी मटमैला हो गया था.वहाँ कोई समन्दर नहीं था.
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वह हताश था.उसे अभी वापस लड़की के पास
जाना है और उसे लेकर एक बार फिर से इस ढलान पर उतरना है.बाहर निकलने का रास्ता
यहीं से कहीं आगे मिलेगा.वह इस बात को लेकर परेशान था कि लड़की इस जगह उसी तरह शान्त बहती नदी को देखकर निराश
हो जायेगी.वह उम्मीद कर रही होगी कि नदी एक घुमड़ते हुए समुद्र की तरह दिखायी
देगी.वह कह देगा कि अब हवायें थम गयी हैं.लेकिन हवाओं का क्या भरोसा?हो सकता है वे
उस वक्त फिर वैसे ही शोर करती हुई बहने लगें.नहीं.उसे कुछ और कहना होगा.नहीं.वह
कुछ नहीं कहेगा.लड़की अगर खड़ी नहीं होगी तो नदी नजर की हद के बाहर रहेगी. इस जगह वह
लड़की को खड़ा नहीं होने देगा.यहाँ से वे फिसलते हुए नीचे चले जायेंगे.इस बात से उसे
राहत मिली.उसने ऊपर चढ़ने के लिये निगाहें उठायीं.
तभी वह दिखायी दे गयी. लड़की!
वह उसी ढलान से उतर रही थी.धीमे-धीमे.सरकते हुए.नदी उसे जरूर दिखायी दे गयी
होगी.
“देखो!”लड़की की आवाज सुनायी दी.वह बीच में रुक गयी थी.
“यह तो वैसे ही बह रही”लड़का निराशा छिपा नहीं सका.
“अभी आंधी आयेगी.”लड़की उसके सामने पहुँच गयी.सूजन भरे नीले चेहरे के बीच उसकी
दर्द भरी मुसकराहट लड़के को अच्छी नहीं लगी.
“मौसम साफ हो गया है”लड़के ने कहा.
“अगली बार जरुर दिखेगा!”लड़की की आवाज
पुराने रंग में लौट आयी,“तब हम दूसरे रास्ते से आयेंगे”
नवीन
कुमार नैथानी
ग्राम
एवं पोस्ट –भोगपुर
जिला
देहरादून-248143(उत्तराखण्ड)
फोन:9411139155
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-12-2018) को "बीता कौन, वर्ष या तुम" (चर्चा अंक-3176) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
एक बेहद खूबसूरत और बेहतरीन कहानी। अनोखेपन के साथ उम्मीद और भरोसे से लबरेज। नवीन जी को बधाई इतनी जीवंत कहानी लिखने के लिए और विजय जी को धन्यवाद पढवाने के लिए।
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