Saturday, December 5, 2020

कहां हो साहेबराव फडतरे?


चाहता तो था कि यादवेन्‍द्र जी की इधर की गतिविधियों पर बात करूं। हमेशा के घुमडकड़ इस जिंदादिल व्‍यक्ति ने पिछले कुछ वर्षों से फोटोग्राफी को लगातार अपने फेसबुक वॉल पर शेयर किया है। उन छवियों में 'अभी अभी' का होना इतना प्रभावी हुआ है कि शाम और सुबह की रोशनी में वर्तमान राजनीति के षडयंत्रों पर भी लगातार टिप्‍पणी की छायाएं बहुत साफ होकर उभरती हुई हैं। लेकिन अपने अनुवादों के लिए प्रसिद्ध यादवेन्‍द्र जी के मेल से प्राप्‍त एक महत्‍वपूर्ण पत्र को प्रकाशित कर रहा हूं। अनुवादों में यादवेन्‍द्र जी के विषय चयन उनके भीतर के उस व्‍यक्ति से भी परिचय रहे हैं, जिसकी काफी स्‍पष्‍ट झलक प्रस्‍तुत पत्र के प्रभाव में भी दिखती है।

सभी चित्र यादवेन्‍द्र जी के ही हैं।

 

वि गौ   

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कहां हो साहेबराव फडतरे? कैसे हो? उम्मीद नहीं पक्का भरोसा है कि अब तक बंदीगृह से मुक्त हो गए होगे और लगभग पचपन साल का प्रौढ़ जीवन एक बार फिर से  पटरी  पर लौट आया होगा - चाहे अध्यात्म के रास्ते पर...या गृहस्थी के रास्ते पर।भारत भ्रमण के अपने सपने को पूरा करते हुए यदि कभी इधर पटना या बिहार का कार्यक्रम बनाओ तो तुम्हें अपने घर आमंत्रित करना मुझे बहुत अच्छा लगेगा।

(पच्चीस साल पुरानी बात है मैंने किसी अंग्रेजी अखबार या पत्रिका में(अब नाम याद नहीं) पुणे के येरवडा जेल के कैदी कवियों की कविताएं अंग्रेजी अनुवाद में पढ़ी थीं। उस पढ़ कर मैंने जेल के प्रमुख को उन कवियों की कविताओं के हिंदी अनुवाद करने की इच्छा के साथ एक अनुरोध पत्र लिखा था जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।कुछ कवियों के साथ मेरा सीधा पत्र व्यवहार भी हुआ और उनमें से कुछ ने काम चलाऊ हिंदी में और कुछ ने मराठी में कविताएं मुझे भेजीं। कविताओं के साथ साथ उन्होंने अपने जीवन अनुभव और सजा के कारणों के बारे में भी मुझे बताया। इस सामग्री का उपयोग कर मैंने अपनी मित्र क वि सीमा शफक के साथ मिलकर "अमर उजाला" की रविवारी पत्रिका के मुखपृष्ठ के लिए एक विस्तृत आलेख तैयार किया - दुर्भाग्य से वह प्रकाशित सामग्री मेरे पास अब नहीं है पर एक कवि साहेबराव फड तरे की यह चिट्ठी आज हाथ लगी।इस चिट्ठी के कुछ अंश यहां प्रस्तुत हैं:)
यादवेन्द्र yapandey@gmail.com
09411100294






 । श्री।
।। ओम, नमो गणेशाय।।

पुणे -येरवडा
दिनांक 27- 11- 1995

प्यारे भाई साहब यादवेंद्र जी, अनोखा साथी साहेबराव का प्यार भरा सलाम

खत लिखने का वजह आपका अंतर्देशी कार्ड मिला। पढ़कर आपके दिल की बात मालुम हो गयी। मेरे यहां के साथी (कवि) उनको आपका अड्रेस देता हुं। और कविताये भेजना या नही भेजना यह उन्ही के ऊपर छोड़ देना। क्योंकि हरेकी पसंती अलग-अलग होती है। मैं और एक बात आपसे पुछना चाहता हुं। की जो कभी हिंदी में ही कविताये लिख रहे हैं। उनकी कविता भेज दिया तो चलेगा क्या? अगर आपने लिखा चलेगा, तो उन्ही को भी आपका अड्रेस दे 
दुंगा।
 आपने और चार पांच कविताये मांगी है। मैं जरूर भेज दुंगा।
 लेकीन पहले कवि तों का अनुवाद पसंत आया तो।
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आपको मैंने पहले "आक्रोश" नाम की कविता भेजी थी। उसमें दुःख से रोने वाला मैं अब बोल रहा है - "अब रोना छोड़ दे"। इतना फर्क मुझ में क्यु हो गया। इसकी वजह मेरी जन्मठेप सजा है। मैंने दुःख को ही गुरु बनाया। और दुःख का वजह भी ढुंडा। अब मुझे ऐसा लग रहा है। मुझे सजा हो गई यही अच्छा हुआ। मैंने अपने बिवी को खत लिखा की तुम मेरी जिंदगी में आयी, इसलिए मुझे खुदा मिला। अब छुटने के बाद अगर तुम मेरे जिंदगी में आने की कोशीस की तो मैं तेरे पैर छु लेगा। मैं तुझे मां कहुंगा। तुझे दुसरी शादी बनाना है तो बना डाल।
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भाई साब, अपनी दोस्ती कितने दिनों की है। यह मुझे भी मालुम नहीं। खुदा ने चाहा तो, आप से बाहर भी मुलाकात होगी। आप अपनी एड्रेस मराठी दोस्तों से लॉन्ग फॉर्म में लिखवा के भेजना (अच्छी अक्षर में) ।अब मेरी उम्र 39 साल की चालु है। अब मेरे पास लिखने के लिए कुछ नहीं है। इसलिए कविता भी लिखना बंद कर दीया है। आप मेरी नजर बाहर की दुनिया में लगी है। सन्यास ले के मैं पैदल से भारत भ्रमन  कर दुंगा। और क्या लिखुं। आपको लिखने के वजह से मैं अपनी बिती हुयी जिंदगी में घूम के आया। जो भुल गया था, उसको याद करना पड़ा। अच्छा कोयी बात नहीं। आपके आने वाले लेटर की राह देखुंगा। आपके दोस्त यार, घर वालों को सलाम।
आपका अनोखा दोस्त 
साहेबराव फडतरे

(यहां मैंने वर्तनी की अशुद्धियां प्रामाणिकता को बरकरार रखने के उद्देश्य से छोड़ दी हैं, मेरी कोई और मंशा नहीं है। यादवेन्द्र  )










3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-12-2020) को   "उलूक बेवकूफ नहीं है"   (चर्चा अंक- 3907)    पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
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सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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Onkar said...

सुन्दर प्रविष्टि

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल said...

सुन्दर रचना।