मैं जयपुर में था, जयपुर मेरे रास्ते में न था। पूर्वोत्तर के द्वार गुवाहटी से देहरादून लौटते हुए दिल्ली के बाद जयपुर निकल गया। मेरा मित्र अरुण (कथाकार अरुण कुमार असफल) यदि जयपुर में न होता तो सीधे देहरादून ही लौटता। जब से अरुण स्थानान्तरित होकर जयपुर गया, मैं जयपुर को उसके बहाने से ही याद करने लगा हूं। हां, अरुण की पहचान अभी जयपुर से उस रूप में नहीं और न ही जयपुर की पहचान को अरुण के साथ देखा जा सकता है अभी। वैसे जयपुर मुझे कृति ओर और उसके सम्पादक विजेन्द्र जी के कारण ही याद आता रहा है।
पूर्वोत्तर की यात्रा के बावजूद यदि जयपुर को ही यहां दर्ज कर रहा हूं तो उसकी खास वजह है, जयपुर की वे दो शाम (30 एवं 31 मार्च 2009) जो जवाहर कला केन्द्र में बिताई। वही जवाहर कला केन्द्र जहां फरवरी माह में मित्र रवीन्द्र व्यास की पेंटिग प्रदर्शनी लगी थी। जवाहर कला केन्द्र स्थित कॉफी हाऊस में कुछ क्षण बिताने के लिए ही पहुंचे थे सुकीर्ति आर्ट गैलरी में टंगे चित्रों को निहारने लगे। कला के फलक पर सृजन का संसार, जी हां यही शीर्षक ज्यादा उपयुक्त है श्रीमती पूनम के चित्रों की उस प्रदर्शनी का, जो उन्होंने खुद ही दिया था। राज महलों की गुलाबी नगरी में भी क्षतिग्रस्त दीवारों वाले घर, झरोखे और ऐसा ही वो सब चित्रित हुआ था कि जयपुर नगरी का वह रूप भी देखा जा सका जिसे हवा-महल, जल-महल, आमेर के किले में देखना संभव ही न था। चित्रों को पेंसिल, चारकोल एवं मार्डन ब्लैक पेंटिग कलर से उकेरा गया था।
यह संयोग ही था कि जवाहर कला केन्द्र में चल रहे संगीत नाटक अकादमी के पांच दिवसीय पुतुल यात्रा उत्सव का आनन्द भी उठा पाए। 30 मार्च की शाम मुक्ताकाशी मंच पर दिल्ली के पूरन भाट और उनके साथियों की प्रस्तुति स्वागत के उस केन्द्रिय भाव जो विजयोल्लास के रंग में रंगे थे, अग्नी दृश्य, कालबेलिया का आनन्द अदभुत अनुभव था। उसी दिन आसाम के कलाकारों द्वारा सती बिहुला की कथा-रूप को पुतुल कला के मार्फत देख पाए। मिलन यादव एवं प्रदीप नाथ के निर्देशन में उत्तर प्रदेश की प्रस्तुति थी गुलाबो सिताबो।
31 मार्च की शाम समकालीन दुनिया का चित्र खींचती प्रस्तुति ए प्रोसियम ऑफरिंग देर से पहुंचने के कारण देखने से वंचित रह गए। लेकिन उसी दिन बंगाल के गणेश गोराई के निर्देशन में राधा-कृष्ण नाच और बंगाल के ही जदुनाथ के निर्देशन में गांधारी की प्रस्तुति को देखना संभव हुआ।
समय को दर्ज करने के लिए मेरे पास जो कैमरा था उसके मार्फत पुतुल यात्रा के कुछ क्षणों को कैद कर पाया हूं, जिसे सभी के साथ बांटने का मन हुआ तो यहां प्रस्तुत कर दे रहा हूं।
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2 comments:
आपका प्लेयर नहीं चला हमसे तो लेकिन आपका ब्लॉग सुंदर लगा. कई सार्थक चीज़ें हैं यहाँ. आपका यह विवरण भी अच्च्छा है शब्द्चित्र जैसा.
जयपुर हो आए ...अच्छा किया। जयपुर हमारी यादों में है। दस साल गुजा़रे हैं वहां। जवाहरकला केंद्र में खूब शामें बीती हैं...आपके साथ कुछ कोनों में एक बार फिर घूम आए हम भी...शुक्रिया ....
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